सोंगरी बावड़ी खंडेला घूमने के स्थान, Songiri Baori Stepwell Khandela Places to Visit and History
सीकर जिले के खंडेला कस्बे को बावड़ियों का शहर कहा जाता है. किसी समय में यहाँ 52 बावड़ियाँ हुआ करती थी जिनकी वजह से यहाँ कभी भी पानी की कमी नहीं हुआ करती थी.
आज हम आपको खंडेला की एक ऐसी ही भव्य बावड़ी के बारे में बताते हैं जिसका नाम है सोनगिरी बावड़ी. इस बावड़ी को सोंगरी बावड़ी, सोंगरा बावड़ी आदि नामों से भी जाना जाता है.
Location of Songiri baori
यह बावड़ी खंडेला कस्बे में नगरपालिका भवन के पास में स्थित है. कई सदियों पुरानी यह बावड़ी काफी भव्य है जिसे हम खंडेला की पहचान भी कह सकते हैं.
बावड़ी के पीछे की तरफ दिशा के देवता दिग्पाल की मूर्ति बनी हुई है. यहाँ से आगे बावड़ी से जुडा हुआ एक प्राचीन कुँआ स्थित है जिसकी गहराई काफी अधिक है.
Architecture and construction of Songiri baori
थोडा आगे जाने पर बावड़ी में प्रवेश करने के लिए सीढियाँ बनी हुई है. ऊपर से देखने पर बावड़ी की गहराई लगभग तीन मंजिला प्रतीत होती है लेकिन नीचे जाकर देखने पर ऐसा लगता है कि यह चार मंजिला है.
अन्दर से बावड़ी की बनावट काफी सुन्दर है. जो पत्थर इस बावड़ी के निर्माण में काम में लिया गया है वह पत्थर शायद कहीं और से लाया गया है.
पूरी बावड़ी तराशे हुए पत्थरों से निर्मित है और ऐसा लगता है कि जैसे इसे बनाने में चूने का प्रयोग नहीं किया गया है. पत्थरों को पुरानी तकनीक से इंटर लॉक किया गया है.
बावड़ी के सभी स्तम्भ और कंगूरे कलात्मक है. नीचे की मंजिल पर एक जगह शिलालेख लगा हुआ है. इस शिलालेख की पूरी भाषा तो समझ में नहीं आती लेकिन एक जगह सोनगिरी बावड़ी लिखा हुआ शब्द स्पष्ट दिखाई देता है.
बावड़ी को देखकर ऐसा लगता है कि किसी समय यह खंडेला की शान रही होगी. इस बावड़ी ने खंडेला के निवासियों के साथ-साथ राहगीरों की प्यास को भी अपने शीतल और निर्मल जल से बुझाया होगा.
वर्तमान में रसूखदारों की बढती रुचि की वजह से अब इस बावड़ी तक पहुँचना थोडा दूभर हो गया है. वैसे मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन योजना के तहत प्रशासन इसकी साफ सफाई जरूर करवाता रहा है.
अगर हम जल के इन प्राचीन स्त्रोतों का संरक्षण कर इन्हें आम जन के उपयोग के लिए काम में लें तो पेयजल की कमी से निजात पाई जा सकती है.
यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि जिस खंडेला कस्बे में से कभी कान्तली नदी बहा करती थी, जिस खंडेला कस्बे में कभी 52 बावड़ियाँ हुआ करती थी, जिस खंडेला का सम्बन्ध महाभारत काल से रहा है उस खंडेला से लोग आज पेयजल की समस्या के कारण पलायन कर रहे हैं.
अगर खंडेला की इन प्राचीन बावड़ियों को पेयजल का स्त्रोत बना दिया जाए तो शायद खंडेला में पेयजल की समस्या से निजात मिल सकती है.
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Written By
Rachit Sharma {BA English (Honours), University of Rajasthan}
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