सीकर में हर्षगिरि पर्वत पर हर्षनाथ शिव मंदिर, Harshnath Shiv Temple on Harshgiri Mountain in Sikar
विभिन्न कालों में शेखावाटी की धरा पर अलग-अलग राजवंशों का शासन रहा है. लगभग एक हजार वर्ष पूर्व यह क्षेत्र अजमेर की शाकम्भरी के प्रतापी चौहान शासकों के अधीन था.
इस बात का प्रमाण सीकर जिले में स्थित उस समय के मंदिर हैं जिनकी वास्तु एवं शिल्प कला पर चौहान शासकों का प्रभाव स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है.
आज हम आपको चौहान शासकों के काल के एक ऐसे मंदिर के विषय में जानकारी देने जा रहे हैं जो धार्मिक आस्था का केंद्र होने के साथ-साथ तत्कालीन शिल्प एवं कला के विषय में भी काफी अधिक जानकारी देता है.
Location of Harshnath Shiv Mandir
इस मंदिर का नाम हर्षनाथ शिव मंदिर है. यह मंदिर सीकर शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूर हर्षगिरि के पहाड़ पर स्थित है. हर्ष नामक गाँव के पास स्थित यह पर्वत लगभग 3000 फीट ऊँचा है.
पर्वत पर नीचे से ऊपर मंदिर तक जाने के लिए दो रास्ते हैं. पैदल जाने वालों के लिए एक रास्ता पगडंडी के रूप में मंदिर की स्थापना के समय का है जिसकी लम्बाई लगभग ढाई किलोमीटर है. दूसरा रास्ता पक्की सड़क के रूप में वाहनों के लिए है जिसकी लम्बाई लगभग ढाई-तीन किलोमीटर है.
वर्षों पूर्व इस पक्की सड़क का निर्माण समाजसेवक बद्रीनारायण सोढाणी ने अमेरिकन संस्था 'कांसा' के सहयोग से करवाया था. हर्ष गाँव से मंदिर तक की दूरी लगभग नौ-दस किलोमीटर की है.
पहाड़ के ऊपर जाने पर इसका एक बड़ा भूभाग समतल भूमि के रूप में है. इसी भूमि पर चौहान (चहमान) शासकों के कुल देवता हर्षनाथ शिव का यह मंदिर महामेरु शैली में निर्मित है.
Nandishwar in Harshnath Shiv Mandir
मंदिर की सीढियाँ चढ़ते ही तोरण द्वार हुआ करता था जिसके कुछ आगे एक नंदेश्वर मंडप था. अब यह मंडप क्षतिग्रस्त हो चूका है लेकिन इस स्थान पर अभी भी सफ़ेद संगमरमर का विशालकाय नंदी विराजमान है.
श्वेत प्रस्तर से निर्मित यह नन्दीश्वर आज भी पिछले एक हजार वर्षों से अपने स्थान पर है. इसके गले में छोटी-छोटी घंटियों की माला है. अपनी विशालता एवं सजीवता की वजह से ये मूर्ति अत्यंत प्रभावित करती है.
नंदी के ठीक सामने हर्षनाथ शिव का प्राचीन खंडित शिव मंदिर है. प्राचीन मंदिर से निकट ही ऊँचे अधिष्ठान पर उत्तर मध्यकालीन शिखर युक्त एक अन्य शिव मंदिर स्थित है.
Who built Harshnath Shiv Mandir?
इस मंदिर को सीकर नगर की स्थापना के समय वर्ष 1730 में राव राजा शिव सिंह ने बनवाया था. इसके गर्भगृह में स्थित सफ़ेद पत्थर द्वारा निर्मित शिव लिंग को तत्कालीन समय का देश का सबसे बड़ा शिवलिंग माना जाता है.
मुख्य शिव मंदिर से कुछ दूरी पर भैरव मंदिर स्थित है जिसका सम्बन्ध जीणमाता से उनके भाई के रूप में माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इसी स्थान पर हर्ष ने तपस्या की थी और बाद में अपनी साधना के बल पर शिव के एक रूप भैरव में समाहित हो गया था.
विक्रम संवत 1030 (973 ईस्वी) के एक अभिलेख के अनुसार इस मंदिर का निर्माण चौहान शासक विग्रहराज प्रथम के शासनकाल में एक शैव संत भावरक्त उर्फ़ अल्लाता ने करवाया था.
Architecture of Harshnath Shiv Mandir
मंदिर में एक गर्भगृह, अंतराल, कक्षासन युक्त रंग मंडप एवं अर्ध मंडप के साथ-साथ एक अलग नंदी मंडप की भी योजना है. अपनी मौलिक अवस्था में यह मंदिर शिखर से परिपूर्ण था जो अब खंडित हो चुका है.
वर्तमान खंडित अवस्था में भी यह मंदिर अपनी स्थापत्य विशिष्टताओं एवं ब्राह्मण देवी देवताओं की प्रतिमाओं सहित नर्तकों, संगीतज्ञों, योद्धाओं व कीर्तिमुख के प्रारूप वाली सजावटी दृश्यावली के उत्कृष्ट शिल्प कौशल हेतु उल्लेखनीय है.
ऐसे प्रमाण है कि जब ये मंदिर बना था तब इसके चारों तरफ विभिन्न देवी देवताओं के कुल चौरासी छोटे-छोटे मन्दिर और बने हुए थे.
उस समय के इस मंदिर कि कल्पना करने मात्र से ही आँखों में शिव मंदिर के साथ-साथ उन सभी मंदिरों का भव्य अक्स आँखों में उतर आता है. धरती से इतनी अधिक ऊँचाई पर स्थित ये मंदिर साक्षात भोलेनाथ के निवास का आभास करवाता है.
Who destroyed Harshnath Shiv Mandir?
सत्रहवीं शताब्दी में औरंगजेब ने हिन्दुओं के मंदिरों को तोड़ने के अभियान के तहत अपने एक सेनापति दराब खान को शेखावाटी क्षेत्र के मंदिरों को तोड़ने के लिए भेजा.
विक्रम संवत् 1735 (1678 ईस्वी) में मुगल सेना ने यहाँ पर मौजूद शिव मंदिर, हर्षनाथ भैरव मंदिर के साथ-साथ अन्य सभी 84 मंदिरों को तोड़कर मूर्तियों को खंडित कर दिया था.
औरंगजेब के विध्वंस के प्रमाणस्वरूप आज भी मंदिर के चारों तरफ मूर्तियाँ ही मूर्तियाँ बिखरी पड़ी है. इन खंडित मूर्तियों में देवी देवताओं, अप्सराओं, सुंदरियों, नर्तकियों आदि की कई मूर्तियाँ तो इतनी अधिक सजीव लगती हैं कि मानों अभी बोल पड़ेंगी.
बाद के कालों में कई मूर्तियों को मंदिर की दीवारों में चुनवा दिया गया था. विखंडित शिव मंदिर के अंशों को एकत्रित कर पुनः जमाया गया है. यह जमा हुआ शिव मंदिर भी काफी भव्य लगता है.
पत्थरों को पुनः जमाकर बनाया हुआ यह शिव मंदिर जब इतना अधिक भव्य लगता है तो यह अपने मूल स्वरुप में कैसा दिखता होगा इसकी कल्पना बड़ी आसानी से की जा सकती है.
मंदिर का पुनः जमाया हुआ सभामंड़प अपने स्तंभों एवं छत पर उत्कीर्ण मूर्तियों की वजह से दर्शनीय है. मंदिर तथा गर्भगृह के द्वार शाखाओं पर सुन्दर नक्काशीयुक्त मूर्तियाँ ही मूर्तियाँ है.
मंदिर के स्तंभों पर सुन्दर नक्काशी की हुई है और इनके मध्य भाग को बेल बूँटों से अलंकृत किया गया है. छत से लगते स्तंभों के ऊपरी भाग पर यक्ष, गन्धर्व एवं अप्सराओं की सुन्दर मूर्तियाँ उत्कीर्ण है.
इन मूर्तियों से तत्कालीन धार्मिक जीवन के साथ-साथ सामाजिक जीवन का भी पता चलता है. यहाँ पर विभिन्न देवताओं जैसे गणेश, कुबेर, इंद्र, शिव, शक्ति, विष्णु आदि के साथ यक्ष, गन्धर्व, अप्सराओं आदि की मूर्तियाँ बहुतायत में है.
देवताओं के साथ ही नर्तक नर्तकी, गायक गायिकाएँ, दास दासियाँ, हाथी, योद्धा, सैनिक आदि की मूर्तियाँ भी बहुतायत में है. गर्भगृह का कुछ भाग सुरक्षित बचा हुआ है जिसमे भगवान शिव का काले पत्थर का बना हुआ चतुर्मुखी शिव लिंग स्थित है.
गर्भगृह में चारों तरफ कोनों में एवं दीवारों पर विभिन्न भाव भंगिमाओं में दीर्घाकार सुर सुंदरियों की प्रतिमाएँ हैं जिनमे से अधिकांश प्रतिमाएँ अप्सराओं की प्रतीत होती है.
मंदिर का नाम हर्षनाथ एवं पहाड़ का नाम हर्षगिरी होने के पीछे माना जाता है कि इस पहाड़ पर भगवान शिव द्वारा त्रिपुर राक्षस का वध किये जाने पर देवताओं में काफी हर्ष हुआ और उन्होंने भोलेनाथ की स्तुति की. भोलेनाथ के नाम पर ही इस पहाड़ का नाम हर्षगिरी एवं मंदिर का नाम हर्षनाथ पड़ा.
वर्तमान में इस स्थान की देखरेख भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अंतर्गत है. यहाँ की कलात्मक मूर्तियाँ और शिलालेख सीकर, अजमेर, दिल्ली सहित देश विदेश के अनेक संग्रहालयों की शोभा बढ़ा रहे हैं.
वर्ष 1934 से 1938 तक सीकर के प्रशासक रहे कैप्टेन वेब ने इस विरासत को बचाने और संरक्षित करने का काफी प्रयास किया. इस पर्वत पर सन् 1971 में सीकर जिला पुलिस के वीएचएफ संचार का रिपिटर केन्द्र स्थापित किया गया.
वर्ष 2004 में इनरकोन इंडिया लिमिटेड ने पवन विद्युत परियोजना प्रारम्भ की और कई पवन चक्कियाँ लगाईं. इन चक्कियों के सैंकड़ों फीट लम्बे पंखे वायु वेग से घूमते रहते हैं और बिजली का उत्पादन करते हैं.
इन पंखों की वजह से दूर से यह स्थान बड़ा आकर्षक लगता है. वर्ष 2015 में तत्कालीन वन मंत्री राजकुमार रिणवां ने हर्ष पर्वत का दौरा कर यहाँ राजस्थान का सबसे ऊँचा रोप-वे बनाने के साथ रॉक क्लाइंबिंग भी शुरू करने की बात कही थी.
अगर ऐसा हो पाता है तो हर्ष पर्वत हिल स्टेशन के साथ-साथ एक बड़े पर्यटक स्थल के रूप में उभरकर हमारे सम्मुख होगा.
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Written By
Rachit Sharma {BA English (Honours), University of Rajasthan}
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