अजीतगढ़ के किले का कभी खेतड़ी से था सम्बन्ध, Ajeetgarh Fort Once castle was related to Khetri
सीकर जिले की श्रीमाधोपुर तहसील में स्थित अजीतगढ़ कस्बा समय के साथ कदमताल करते हुए प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रहा है. यह श्रीमाधोपुर कस्बे से लगभग 30 किलोमीटर तथा राजधानी जयपुर से लगभग 66 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस कस्बे को खेतड़ी के प्रख्यात शासक राजा अजीतसिंह ने बसाया था.
Who was the founder of Ajeetgarh town and built Ajeetgarh fort?
गौरतलब है कि राजा अजीतसिंह की स्वामी विवेकानंद के साथ घनिष्ट मित्रता थी. इतिहासकारों के अनुसार खेतड़ी के शासक राजा अजीतसिंह (1870-1901) ने अजीतगढ़ तथा भैंसलाना के निकट अजीतपुरा नामक दो कस्बे बसाए थे.
अजीतसिंह ने अजीतगढ़ कस्बे में एक किला बनवाया तथा यहाँ पर एक पुलिस थाना भी खोला जिसके अंतर्गत कोटपूतली समेत नौ पुलिस चौकियाँ स्थापित की गई थी.
Ajeetgarh fort also known as Ajeet Singh Haveli
अजीतगढ़ के किले को अजीतसिंह की हवेली भी कहा जाता रहा है तथा इस किले में कई दशकों तक थोई पुलिस थाने के अंतर्गत पुलिस चौकी संचालित रही.
वर्ष 1993 में अजीतगढ़ में पुलिस थाना खुला तब यह पुलिस चौकी इस थाने के अधीन हो गई तत्पश्चात किले में रहने वाले पुलिस स्टाफ ने किले को छोड़ दिया. वर्ष 2007 में असामाजिक तत्वों ने किले के मुख्य द्वार पर स्थित गणेश प्रतिमा को तोड़ डाला.
वर्ष 2009-10 में एक साधु इस किले पर कब्जा करने की नियत से किले में घुस गया जिसे पुलिस ने हटाकर इस पर ताला लगा दिया. बाद में अज्ञात लोगों द्वारा किले के मुख्य द्वार को दो-तीन बार आग लगाकर जलाने का प्रयास किया गया.
Architecture of Ajeetgarh fort
किले की बनावट तथा निर्माण को देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह किला किसी समय अवश्य ही स्थापत्य कला का नायाब नमूना रहा होगा.
किले की प्राचीर किसी वृहद किले का सा आभास कराती है. किले में दो कुएँ है जिनमे से एक कुआँ सीढियाँ चढ़ने के बाद में आता है तथा यह अभी भी पानी से लबालब भरा हुआ है.
खास बात यह है कि इस कुएँ को इस तरह से बनाया गया है कि किले की छत से भी इस कुएँ का पानी निकाला जा सकता है. दूसरा कुआँ मुख्य सीढ़ियों के सामने की तरफ है जो अब कचरे द्वारा भर दिया गया है.
किले के अन्दर बनी हवेली में दो बड़े-बड़े चौक बने हुए हैं तथा तहखानों समेत काफी सारे कमरे भी बने हुए हैं. कहते हैं कि इस किले से कुछ सुरंगे भी निकलती है तथा उनमे से एक सुरंग जगदीशजी के मंदिर तक भी जाती है.
यह बड़े शर्म की बात है कि हम अपनी विरासतों को समय के थपेड़ों से बचाने की जगह खुद उन्हें नष्ट करने में सहायक हो रहे हैं. विरासत तथा संस्कृति हमारे पूर्वजों का दिया वो तोहफा है जो समय-समय पर हमें उनकी याद दिलाता है. यह वो धन होता है जिसकी कोई कीमत नहीं हो सकती है परन्तु फिर भी हम नासमझी की वजह से इस कीमत को पहचान नहीं पा रहे हैं.
जहाँ हमें स्वयं इन धरोहरों की रक्षा का बीड़ा उठाना चाहिए वहीँ हम स्वयं इन्हें कचराघर बनाकर तथा येन केन प्रकारेण इन्हें नेस्तनाबूद करने की दिशा में आगे बढ़ते जा रहे हैं. आज इस किले के सामने कचरा डाल कर स्वच्छ भारत मिशन का मखौल उड़ाया जा रहा है और प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है.
स्थानीय निवासियों ने कई मर्तबा प्रशासन से किले की अनदेखी तथा असामाजिक तत्वों एवं भूमाफियाओं द्वारा किले पर कब्जा करने की नियत पर अंकुश लगाने के लिए उचित कदम उठाने की मांग की है परन्तु आज तक कुछ नहीं हुआ है.
यह प्रशासन की जिम्मेदारी बनती है कि वह इस ऐतिहासिक किले का संरक्षण करवाए. अगर प्रशासन अपने आप को इतना सक्षम नहीं पाता है तो फिर इसे निजी हाथों में भी सौपा जा सकता है जो इस किले की उचित देखभाल कर सके.
कुल मिलाकर सभी लोगों को किले के वजूद को बचाने के लिए सम्मिलित रूप से प्रयास करने होंगे अन्यथा हमें स्वर्ग में बैठे हमारे पूर्वज कभी माफ नहीं कर पाएँगे.
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Written By
Rachit Sharma {BA English (Honours), University of Rajasthan}
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