तीर्थ गुरु लोहार्गल धाम की कहानी, Story of Teerth Guru Lohargal Dham

लोहार्गल का सम्बन्ध भगवान विष्णु, भगवान परशुराम, भगवान सूर्यदेव एवं पांडवों के साथ किस तरह से रहा है इसके पीछे की कथा संक्षेप में इस प्रकार है. लोहार्गल क्षेत्र को अनादिकाल से ब्रह्म क्षेत्र के रूप में जाना जाता रहा है. अनादिकाल में इस क्षेत्र में एक बड़ा सरोवर हुआ करता था.

इस सरोवर के जल को भगवान विष्णु के क्षीर सागर का एक अंश माना जाता था और ऐसी मान्यता थी कि अगर कोई भी प्राणी इस सरोवर के पवित्र जल में स्नान कर लेगा तो उसके सारे पाप धुल जाएँगे और उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी.

सरोवर के इस जल के संपर्क में आने की वजह से बहुत से जीव जंतुओं को मोक्ष की प्राप्ति होने लगी और जीवन मरण का चक्र बाधित होने लगा. तब भगवान विष्णु ने सुमेरु पर्वत के पौत्र एवं नाती माल और केतु से इस सरोवर को ढकने के लिए कहा.

Why lohargal is called as teerth guru?

जब माल और केतु ने इस क्षेत्र पर आच्छादित होकर इसे ढका तो यहाँ पर सात जल धाराएँ निकली. इन जलधाराओं में मूल लोहार्गल जलधारा के साथ-साथ कर्कोटिका (किरोड़ी), शाकम्भरी देवी, नागकुंड, टपकेश्वर, सौभाग्यावती और खोरी कुंड की जलधारा शामिल है.

कालांतर में भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम इस ब्रह्म क्षेत्र में आए और यहाँ तपस्या की. यहाँ इन्होंने वर्तमान में सूर्य कुंड की जगह पर स्वर्ण गठित यज्ञ की वेदी बनाकर यज्ञ किया.

देवताओं का आह्वान किए जाने पर इस यज्ञ में सूर्य देव के साथ-साथ कई अन्य देवता पधारे. भगवान परशुराम ने यज्ञ की भेंट स्वरुप अपने खण्ड से खांडल विप्र समाज की उत्पत्ति की. इसी वजह से खंडेलवाल ब्राह्मण समाज का उद्गम लोहार्गल से माना जाता है.

सूर्यदेव को यह स्थान काफी पसंद आया और उन्होंने भगवान विष्णु की तपस्या कर इसे वरदान स्वरुप प्राप्त किया. बाद में भगवान सूर्य देव सपत्निक यहाँ निवास करने लगे जिससे यह स्थान ब्रह्म क्षेत्र की जगह सूर्य क्षेत्र के नाम से अधिक जाना जाने लगा.

महाभारत काल में यहाँ पर दो बार पांडव आए. पहली बार विराटनगर में कीचक का वध करने के बाद पांडव यहाँ आए और यहाँ पर एक गुफा में उन्होंने अपने अज्ञातवास का 13वाँ वर्ष गुजारा. जिस गुफा में पांडवों ने अपने अज्ञात वास का एक वर्ष गुजारा था उसे आज भीम की गुफा के नाम से जाना जाता है.

दूसरी बार महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद स्वजनों की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए आए. श्री कृष्ण के कहने पर देवर्षि नारद ने पांडवों को अपने पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रेरित किया और कहा कि जिस तीर्थ के पानी से तुम्हारे शस्त्र गल जाए उसी तीर्थ में स्नान करने से तुम्हारी मुक्ति हो जाएगी.

पांडव तीर्थयात्रा करते-करते इस सूर्य क्षेत्र में आए. यहाँ के जल के संपर्क में आते ही भीम की गदा और अर्जुन का गांडीव धनुष पानी में गल गए. पांडवों के शस्त्र पानी में गल जाने की वजह से इस स्थान को बाद में लोहार्गल के नाम से जाना जाने लगा.

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Written By

Uma Vyas {MA (Education), MA (Public Administration), MA (Political Science), MA (History), BEd}

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