त्रिवेणी धाम के संत नारायणदासजी महाराज, Padma Shri Sant Narayan Das Ji Maharaj of Triveni Dham
त्रिवेणी धाम एक पावन तीर्थ स्थल है जिसकी स्थापना संत गंगादासजी ने सत्रहवीं शताब्दी में की थी. यह स्थल विभिन्न तेजस्वी संतों की तपोभूमि रहा है.
इन संतो में खोजीद्वाराचार्य ब्रह्मपीठाधीश्वर काठिया परिवाराचार्य नारायण दासजी एक ऐसे संत रहे जिनकी वजह से इस स्थान को राष्ट्रीय ही नहीं अन्तर्राष्ट्रीय पहचान मिली. इन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, जनकल्याण तथा अध्यात्म के क्षेत्र में अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया.
इनके इन परोपकारी कार्यों की वजह से वर्ष 2018 में इन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया. आज हम नारायण दासजी के जीवन के साथ-साथ त्रिवेणी धाम में रहते हुए इनके उन कार्यों के विषय में जानेंगे जिनकी वजह से इस स्थान को इतनी प्रसिद्धि मिली.
नारायणदास जी महाराज का जन्म विक्रम संवत 1984 (1927 ईस्वी) शाके आश्विन बुदी सप्तमी शनिवार के दिन चिमनपुरा ग्राम में गौड़ ब्राह्मण परिवार में हुआ. इनके पिता का नाम राम दयाल शर्मा एवं माता का नाम भूरी बाई था.
बचपन में इन्हें क्षय रोग हो गया था तब इनकी माताजी भूरी देवी ने माँ मंदालसा और माँ मैनावती से प्रेरणा लेकर इन्हें त्रिवेणी धाम के संत बाबा भगवानदासजी के चरणों में समर्पित कर दिया था.
विक्रम संवत 2004 में त्रिवेणी धाम में आने के पश्चात इन्होंने आश्रम का कार्यभार संभालना शुरू कर दिया. भगवानदासजी महाराज के सानिध्य में इन्होंने कई प्रकार की कठोर तपस्या करनी शुरू कर दी.
Life of narayandasji in triveni dham
इन तपस्याओं में बारह वर्षों तक ग्रीष्म ऋतु में भरी दोपहर में मिट्टी में बैठकर साधना करना, बारह वर्षों तक वर्षा ऋतु में जगदीशजी के पहाड़ पर बैठकर श्रीराम मंत्र का पुरश्चरण करना और शरद ऋतु में गंगाजल में बैठकर साधना करना शामिल है. तपस्याकाल में उपवास और मौन व्रत का भी पूर्ण पालन होता था.
भगवान दास जी के साकेत धाम गमन के पश्चात विक्रम संवत 2028 (1971 ईस्वी) में नारायण दासजी त्रिवेणी धाम के पीठाधीश्वर बने. काठिया खाक चौक डाकोर में मूल ब्रह्मपीठ है एवं अन्य पीठ अवध धाम, त्रिवेणी धाम, जनकपुर धाम, काठियावाड आदि स्थानों पर है.
मूल ब्रह्मपीठ पर ब्रह्मपीठाधीश्वर के रूप में नारायण दासजी महाराज का अभिषेक पौष बुदी एकम विक्रम संवत 2055 (1998 ईस्वी) को हुआ. बाद में इसकी देखरेख में भगवान नृसिंह देव का नया मंदिर बना एवं ब्रह्म पीठ का जीर्णोद्धार हुआ.
प्रयाग महाकुम्भ में महाराज का शाही स्नान प्रथम सीट पर पहली बार वर्ष 2001 को संपन्न हुआ. काठिया नगर डाकोर खाक चौक और त्रिवेणी धाम खालसा की स्थापना वर्ष 2003 में नासिक महाकुम्भ में हुई.
अहमदाबाद में वर्ष 2004 में समस्त संत समाज की उपस्थिति में इनका श्रीखोजीद्वाराचार्य के रूप में पदाभिषेक हुआ. इन्होंने जनकल्याण के कार्यों में अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया.
शिक्षा के लिए स्कूल एवं कॉलेज बनवाए, स्वास्थ्य के लिए चिकित्सालय बनवाए एवं धार्मिक कार्यों के लिए मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया.
इन्होंने विक्रम संवत 2030 में 108 कुंडात्मक श्रीराम महायज्ञ का आयोजन किया. कहते हैं कि इस यज्ञ में इतने अधिक घी का प्रयोग किया गया था कि अग्निदेव को अजीर्ण हो गया.
इस यज्ञ में सभी पुराणों, उपनिषदों, वाल्मीकि रामायण, श्रीरामचरितमानस, श्रीमद्भागवत, श्रीमद्भागवत गीता आदि ग्रंथों का पठन और अखंड श्रीराम नाम संकीर्तन के साथ-साथ रामलीला का आयोजन हुआ.
इसके पश्चात महाराजश्री ने विभिन्न स्थानों पर यज्ञ करवाकर यज्ञों की एक श्रृंखला की शुरुआत की. इन्होंने त्रिवेणी धाम सहित धौला, छारसा, बाण गंगा बंगला धाम, गोविन्द देवजी जयपुर, अर्जुनपुरा, श्रीजगदीशजी अजीतगढ़, डाकोर धाम गुजरात, इंदौर, मुंबई, केलि ग्राम मध्यप्रदेश, बाण गंगा गठवाड़ी, कपासन माता मंदिर बाणगंगा मैड़-बैराठ जयपुर, श्रीजनकपुर धाम नेपाल, शुकताल उत्तर प्रदेश, रामेश्वरम धाम दक्षिण भारत, जगदीश पुरी उड़ीसा, धूलिया महाराष्ट्र, नोरंग पुरा, हरिदास का बास, जगद्गुरु श्रीरामानन्दाचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय जयपुर आदि स्थानों पर कुल 45 यज्ञ संपन्न करवाए.
इन्होंने त्रिवेणी धाम के साथ-साथ खाक चौक ब्रह्मपीठ डाकोर धाम, चिमनपुरा, वासुदेव घाट अवध धाम, हथौरा सीकर, अजीतगढ़ आदि विभिन्न स्थानों पर कुल 12 बार श्रीराम नाम का अखंड संकीर्तन एवं जागरण करवाया.
महाराज श्री की अगुवाई में कई साप्ताहिक श्रीराम नाम संकीर्तन सत्संग मंडलों की स्थापना हुई. देश और विदेश में महाराज के शिष्य साप्ताहिक श्रीराम नाम संकीर्तन सत्संग करते रहते हैं.
इन्होंने कई स्थानों पर चिकित्सा शिविरों के साथ-साथ पाँच चिकित्सालयों के निर्माण में अपना योगदान दिया. जिनमे तीन इनके स्वयं के नाम पर अजीतगढ़, कांवट और सेंधवा मध्यप्रदेश में स्थित है, शेष दो में से एक इनकी माताजी भूरी बाई के नाम पर इनके पैतृक गाँव चिमनपुरा में और दूसरा इनके गुरु भगवान दास के नाम पर विराटनगर के बालेश्वर ग्राम में स्थित है.
इन्होंने विभिन्न स्थानों पर विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, विद्यालय और छात्रावास आदि के रूप में कुल ग्यारह शैक्षणिक स्थानों के निर्माण में योगदान दिया.
इनमे त्रिवेणी धाम में जगद्गुरु श्रीरामानन्दाचार्य वरिष्ठ उपाध्याय संस्कृत एवं वेद विद्यालय, जयपुर में जगद्गुरु श्रीरामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, बाबा नारायणदास छात्रावास केशव विद्यापीठ, चिमनपुरा में बाबा भगवानदास महाविद्यालय के साथ श्री अनोफ बाई विद्यालय, शाहपुरा में बाबा श्रीगंगादास महिला महाविद्यालय, शाहपुरा के साईवाड में बाबा श्रीनारायणदास उच्च माध्यमिक विद्यालय, जमवारामगढ़ के धौला में वैष्णव कुल भूषण राजकीय माध्यमिक विद्यालय, अजीतगढ़ में संस्कृत विद्यालय, सीकर के मंडूस्या में राजकीय माध्यमिक विद्यालय, शाहपुरा के जसवंतपुरा में राजकीय वरिष्ठ उपाध्याय संस्कृत विद्यालय शामिल हैं.
इनके नेतृत्व में त्रिवेणी धाम पीठ द्वारा त्रिवेणी धाम के साथ-साथ धाराजी अजीतगढ़, सीकर, विराट नगर, शाहपुरा, चाकसू, जयपुर, डाकोर धाम गुजरात, अवध धाम उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, हरिद्वार आदि विभिन्न स्थानों पर मंदिर एवं आश्रम संचालित हो रहे हैं.
इनमें त्रिवेणी धाम में श्रीनृसिंह एवं सीताराम मंदिर, अष्टोत्तरशत (108) कुंडात्मक यज्ञशाला, त्रिवेणी धाम एवं श्रीगंगादास गौशाला, श्रीरामचरितमानस भवन शिलालेख, श्री अयोध्यानाथ मंदिर अवधपुरी, श्रीनृसिंह मंदिर ब्रह्म पीठ काठिया खाक चौक डाकोर धाम गुजरात, श्री काठिया मंदिर वासुदेव घाट श्री अवध धाम आदि कुछ उल्लेखनीय हैं.
17 नवंबर 2018 शनिवार को 94 साल की उम्र में इन्होंने अपना शरीर त्यागकर स्वर्गारोहण किया. 17 दिसंबर 2018 को त्रिवेणी धाम में जगतगुरु हंस वासुदेवाचार्य एवं जगद्गुरु श्री जी श्याम शरण आचार्य महाराज जी के सानिध्य में नारायणदासजी महाराज की चरण पादुका की स्थापना हुई.
नारायणदासजी महाराज के पश्चात त्रिवेणी धाम में रामरिछपालदासजी महाराज व डाकोर धाम में रामरतनदासजी महाराज की चादर पोशी हुई.
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Written By
Uma Vyas {MA (Education), MA (Public Administration), MA (Political Science), MA (History), BEd}
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