क्या धर्म और विलासिता का आपस में कोई सम्बन्ध है?, Is there any relation between religion and luxury?
क्या विलासी जीवन धर्म के पथ से भटकने लग जाता है? क्या धार्मिक व्यक्ति को विलास में नहीं डूबना चाहिए? ये कुछ ऐसे प्रश्न है जिनका उत्तर प्राप्त करना बहुत आवश्यक है.
विलासिता उस स्थिति का नाम होता है जो एक धार्मिक व्यक्ति को धर्म के पथ से भटकाकर अधर्म के पथ पर ले जा सकती है.
विलासिता सम्पूर्ण भौतिक ऐश्वर्य प्राप्ति और उनके भोग की वह स्थिति है जिसमे व्यक्ति सब कुछ भूलकर सिर्फ और सिर्फ उसकी प्राप्ति में डूबा रहता है. विलासी व्यक्ति सत्य और असत्य में भेद कर पानें में अक्षम हो जाता है.
Human is social
इंसान एक सामाजिक प्राणी है. वह मन में कई संतोष, असंतोष, दुःख दर्द, कामनाएँ, इच्छाएँ तथा सपने लेकर इस दुनियाँ में जीता है.
जब इच्छित फल नहीं मिल पाता है तो मन अतृप्त होता है और वह व्याकुल और बैचैन होकर अधर्म की तरफ कदम बढ़ाने लगता है लेकिन तृप्ति मिल जाने पर वह धर्म के रास्ते पर चलने का प्रयास करता है.
जब जीवन से धर्म दूर होने लगता है तब मनुष्य के जीवन में विलास बढ़ने लगता है, साथ ही साथ उसका स्वभाव भी परिवर्तित होने लगता है. इंसान क्रूर और स्वार्थी बननें लगता है.
हो सकता है कि विलासिता में वह यह भी भूल जाये कि वह इंसान है, परिणामस्वरूप उसकी क्रूरता, स्वार्थ और निर्दयता बढती जाती है. धीरे धीरे वह कई निर्दोष प्राणियों को सतानें लग जाता है जिनकी आह भी उस क्रूरता में दब जाती है.
वर्तमान दुनिया में दयावान, सह्ह्र्दय लोग वैसे ही काफी कम होते जा रहे हैं तथा क्रूर, स्वार्थी, लोभी एवं लालची व्यक्तियों की संख्या बढती जा रही है.
Character of human is changing
इंसान का चरित्र इतना गूढ़ होता जा रहा है कि उसे समझ पाना कठिन होता जा रहा है. धन के लालच में लोग एक दूसरे की हत्या तक कर देते हैं. सारे रिश्ते नाते भुलाकर सिर्फ स्वार्थसिद्धि का रास्ता अपनाया जा रहा है.
दया और करुणा नामक भावों का विलोपन हो रहा है. व्यक्ति के मन में हमेशा किसी न किसी चीज की अतृप्ति का बोझ हमेशा बना रहता है. व्यक्ति जितना स्वार्थ और विलास को भोगता है वह उतना अधिक निर्दय और कठोर बनता चला जाता है.
जो व्यक्ति प्रसन्न रहता है वह भी सही तरीके से धर्म को नहीं अपना पाता है तो फिर उस व्यक्ति से तो इसे अपनाने की कोई अपेक्षा ही नहीं कर सकता जो प्रमादी और आलसी है और किसी न किसी भौतिक नशे में मदमस्त रहता है. व्यक्ति अगर आत्मिक रूप से धर्म से जुड़ जाता है तब वह भोग विलास से दूर होने लगता है.
किसी की मृत्यु होने पर शमशान में जो भावना, मनोवृति व विरक्ति की मनोस्थिति हर इंसान में आती है अगर वही भाव सम्पूर्ण जीवन में बने रहे तो जीवन सुख और संतुष्टि से परिपूर्ण हो जायेगा और इंसान धर्म के रास्ते पर चलने लगेगा.
धर्म इंसान का चित्त शांत रखता है इसी लिए धार्मिक व्यक्ति भोग विलास से दूर रहता है एवं उसके जीवन में इनका कोई स्थान नहीं होता है.
वर्तमान समय में व्याप्त विलास को समाप्त करने तथा मनुष्यों को पुनः धर्म के रास्ते पर लाने के लिए महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी आदि मार्गदर्शकों की परम आवश्यकता है.
अगर धरती पर ये परमपुरुष पुनः जन्म लें तो शायद वे इस संसार को भोग विलास से दूर कर पाए अन्यथा किसी मानव में तो वह शक्ति नहीं है.
Written By
Uma Vyas {MA (Education), MA (Public Administration), MA (Political Science), MA (History), BEd}
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