इस कुंड में गल गए थे पांडवों के हथियार

इस कुंड में गल गए थे पांडवों के हथियार - Lohargal Dham, इसमें तीर्थ गुरु लोहार्गल के साथ भीम की गुफा, सूर्य मंदिर, सूर्य कुंड के बारे में जानकारी है

Lohargal Dham

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शेखावाटी क्षेत्र में स्थित लोहार्गल तीर्थ का धार्मिक महत्व पुष्कर के बाद में सबसे अधिक माना जाता है। जिस प्रकार पुष्कर को तीर्थ राज की संज्ञा दी गई है उसी प्रकार लोहार्गल को गुरु तीर्थ की संज्ञा दी गई है।

लोहार्गल तीर्थ को 68 तीर्थों का गुरु तीर्थ माना जाता है। इस स्थान का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। माल केतु पर्वत से आच्छादित लोहार्गल धाम का सम्बन्ध भगवान विष्णु, परशुराम और भोलेनाथ के साथ-साथ पांडवों के साथ जोड़ा जाता है।

लोहार्गल के पवित्र जल को भगवान विष्णु के क्षीर सागर का एक अंश माना जाता है और ऐसी मान्यता है कि इस जल में स्नान करने मात्र से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। वर्तमान लोहार्गल के इस क्षेत्र को अनादि काल से ब्रह्म क्षेत्र के रूप में जाना जाता रहा है।

कालांतर में भगवान सूर्य के निवास की वजह से इसे सूर्य क्षेत्र एवं महाभारत काल में पांडवों के आगमन की वजह से लोहार्गल के नाम से जाना गया।

ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर स्थित सूर्य कुंड के पानी में पांडवों के हथियार गल गए थे जिस वजह से यहाँ का नाम लोहार्गल पड़ा।

लोहार्गल धाम नामक यह स्थान झुंझुनू जिले की नवलगढ़ तहसील में अरावली की सुरम्य पहाड़ियों के बीच में स्थित है। सीकर से यहाँ की दूरी 32 किलोमीटर एवं उदयपुरवाटी से लगभग 14 किलोमीटर है।

लोहार्गल क्षेत्र में अनेक धार्मिक एवं दर्शनीय स्थल मौजूद है जिनमें से कुछ प्राचीन ही नहीं अति प्राचीन एवं पौराणिक हैं। यहाँ पर सूर्य मंदिर, सूर्य कुंड, शिव मंदिर, पांडव गुफा (भीम गुफा) एवं पांडव कुंड (भीम कुंड) आदि प्रमुख है।

सूर्य मंदिर में भगवान सूर्य देव सपत्नीक माता छाया देवी के साथ विराजित हैं। भगवान सूर्य के पास में ही राधा कृष्ण, लक्ष्मी नारायण (गरुड़) एवं सीताराम (रघुनाथ) भी विराजमान हैं।


सूर्य मंदिर के पीछे भीम गुफा मौजूद है। ऐसा माना जाता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास का तेरहवाँ एवं अंतिम वर्ष इस गुफा में बिताया था।

गुफा के पास ही संकट मोचन हनुमान मंदिर बना हुआ है। गुफा के सामने ही एक कुंड बना हुआ है जिसे भीम कुंड के नाम से जाना जाता है।

सूर्य मंदिर के बिलकुल सामने पवित्र सूर्य कुंड बना हुआ है। इस कुंड का जल बड़ा पवित्र माना जाता है। मालकेतु पर्वत के ऊपरी भाग से इस कुंड में निरंतर जल की धारा बहती रहती है जिससे यह कुंड वर्ष भर भरा रहता है।

ऐसा माना जाता है कि इस कुंड के जल में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि किसी मृत व्यक्ति की अस्थियाँ अगर इस पानी में प्रवाहित की जाए तो ये अस्थियाँ पानी में गल जाती है और मृतक को मुक्ति मिल जाती है।

इस पानी का महत्व पवित्र गंगाजल के समान माना गया है। सूर्य मंदिर के एकदम सामने एवं सूर्य कुंड के बगल में शिव मंदिर स्थित है। यह मंदिर भी काफी प्राचीन बताया जाता है।

पास की पहाड़ी पर प्राचीन सूर्य मंदिर स्थित है। साथ ही वनखंडी का मंदिर भी है। लगभग चार सौ सीढ़ियाँ चढ़कर मालकेतु के दर्शन किए जा सकते हैं।

लोहार्गल धाम में छोटी और बड़ी दो बावडियाँ भी बनी हुई है। छोटी बावड़ी सूर्य मंदिर से अधिक दूर नहीं है। इसे ज्ञान बावड़ी के नाम से जाना जाता है।

बड़ी बावड़ी लोहार्गल से तीन चार किलोमीटर दूर है जिसे चेतन दास की बावड़ी के नाम से जाना जाता है। यह बावड़ी काफी बड़ी और भव्य है।

लोहार्गल में हर वर्ष चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के अवसर पर मेला लगता है एवं सोमवती अमावस्या और भाद्रपद अमावस्या के दिन यहाँ श्रद्धालुओं की काफी आवाजाही रहती है।

भाद्रपद मास में जन्माष्टमी से लेकर अमावस्या तक प्रत्येक वर्ष में लाखों श्रद्धालु मालकेतु पर्वत की 24 कोस की पैदल परिक्रमा करते हैं जिसे चौबीस कोसी परिक्रमा के नाम से जाना जाता है।

लोहार्गल में मालकेतु पर्वत की 24 कोसीय परिक्रमा में अमावस्या को सूर्यकुण्ड में महा स्नान और लक्खी मेला लगता है। इस यात्रा के मार्ग में 125 छोटे बड़े मंदिर आते हैं।

यह 24 कोसीय परिक्रमा लोहार्गल में ज्ञान व्यापी, शिव गोरा शक्ति मंदिर गोल्याणा, चिराना, बाबा सुंदर दास  मंदिर, किरोड़ी, कोट गाँव, कोट बाँध, शाकंभरी, सकराय, टपकेश्वर महादेव, सौभाग्यवती नदी, बारा-तिबारा, नीमड़ी घाटी, रघुनाथगढ़, खोरी, रामपुरा, बाबा हनुमानदास आश्रम, गोल्याणा होते हुए वापस लोहार्गल पहुँचती है।

ऐसा माना जाता है कि इस चौबीस कोसी परिक्रमा की शुरुआत भोलेनाथ ने की थी। लोहार्गल का सम्बन्ध भगवान विष्णु, भगवान परशुराम, भगवान सूर्यदेव एवं पांडवों के साथ किस तरह से रहा है इसके पीछे की कथा संक्षेप में इस प्रकार है।

लोहार्गल क्षेत्र को अनादिकाल से ब्रह्म क्षेत्र के रूप में जाना जाता रहा है। अनादिकाल में इस क्षेत्र में एक बड़ा सरोवर हुआ करता था।

इस सरोवर के जल को भगवान विष्णु के क्षीर सागर का एक अंश माना जाता था और ऐसी मान्यता थी कि अगर कोई भी प्राणी इस सरोवर के पवित्र जल में स्नान कर लेगा तो उसके सारे पाप धुल जाएँगे और उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी।

सरोवर के इस जल के संपर्क में आने की वजह से बहुत से जीव जंतुओं को मोक्ष की प्राप्ति होने लगी और जीवन मरण का चक्र बाधित होने लगा। तब भगवान विष्णु ने सुमेरु पर्वत के पौत्र एवं नाती माल और केतु से इस सरोवर को ढकने के लिए कहा।

जब माल और केतु ने इस क्षेत्र पर आच्छादित होकर इसे ढका तो यहाँ पर सात जल धाराएँ निकली। इन जलधाराओं में मूल लोहार्गल जलधारा के साथ-साथ कर्कोटिका (किरोड़ी), शाकम्भरी देवी, नागकुंड, टपकेश्वर, सौभाग्यावती और खोरी कुंड की जलधारा शामिल है।

कालांतर में भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम इस ब्रह्म क्षेत्र में आए और यहाँ तपस्या की। यहाँ इन्होंने वर्तमान में सूर्य कुंड की जगह पर स्वर्ण गठित यज्ञ की वेदी बनाकर यज्ञ किया।

देवताओं का आह्वान किए जाने पर इस यज्ञ में सूर्य देव के साथ-साथ कई अन्य देवता पधारे। भगवान परशुराम ने यज्ञ की भेंट स्वरूप अपने खण्ड से खांडल विप्र समाज की उत्पत्ति की।

इसी वजह से खंडेलवाल ब्राह्मण समाज का उद्गम लोहार्गल से माना जाता है। सूर्यदेव को यह स्थान काफी पसंद आया और उन्होंने भगवान विष्णु की तपस्या कर इसे वरदान स्वरूप प्राप्त किया।

बाद में भगवान सूर्य देव सपत्नीक यहाँ निवास करने लगे जिससे यह स्थान ब्रह्म क्षेत्र की जगह सूर्य क्षेत्र के नाम से अधिक जाना जाने लगा।

महाभारत काल में यहाँ पर दो बार पांडव आए। पहली बार विराट नगर में कीचक का वध करने के बाद पांडव यहाँ आए और यहाँ पर एक गुफा में उन्होंने अपने अज्ञातवास का 13वाँ वर्ष गुजारा।

जिस गुफा में पांडवों ने अपने अज्ञातवास का एक वर्ष गुजारा था उसे आज भीम की गुफा के नाम से जाना जाता है। दूसरी बार महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद स्वजनों की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए आए।

श्री कृष्ण के कहने पर देवर्षि नारद ने पांडवों को अपने पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रेरित किया और कहा कि जिस तीर्थ के पानी से तुम्हारे शस्त्र गल जाए उसी तीर्थ में स्नान करने से तुम्हारी मुक्ति हो जाएगी।

पांडव तीर्थयात्रा करते-करते इस सूर्य क्षेत्र में आए। यहाँ के जल के संपर्क में आते ही भीम की गदा और अर्जुन का गांडीव धनुष पानी में गल गए। पांडवों के शस्त्र पानी में गल जाने की वजह से इस स्थान को बाद में लोहार्गल के नाम से जाना जाने लगा।

लोहार्गल धाम की मैप लोकेशन - Map Location of Lohargal Dham



लोहार्गल धाम का वीडियो - Video of Lohargal Dham



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Ramesh Sharma

My name is Ramesh Sharma. I am a registered pharmacist. I am a Pharmacy Professional having M Pharm (Pharmaceutics). I also have MSc (Computer Science), MA (History), PGDCA and CHMS. Usually, I travel at hidden historical heritages to feel the glory of our history. I also travel at various beautiful travel destinations to feel the beauty of nature. I write religious articles related to temples and spiritual places specially Khatu Shyamji also.

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