परमार राजा ने शिवजी के चढ़ाया अपना शीश - Kundeshwar Mahadev Mandir Udaipur, इसमें उदयपुर के पास कुंडेश्वर महादेव मंदिर के बारे में जानकारी दी गई है।
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राजस्थान में एक ऐसा शिव मंदिर है जो 2000 वर्ष पुराना होने के साथ-साथ कई तपस्वियों की तपस्या का केंद्र भी रहा है। मंदिर के पास स्वयं गंगा माँ नदी के रूप में बह रही है जो आगे जाकर एक बारहमासी झरने का रूप ले लेती है।
पहाड़ियों के बीच जंगल में स्थित होने की वजह से यह जगह आस्था के साथ-साथ पर्यटन का भी प्रमुख केंद्र हैं। लोग यहाँ पर भोलेनाथ के दर्शनों के साथ-साथ झरने में नहाने का आनंद भी उठाते हैं।
मंदिर एक सैंकड़ों वर्ष पुराने विशाल बरगद के पेड़ के नीचे स्थित है। काफी लंबी चौड़ी जगह में फैला हुआ ये बरगद का पेड़ इस जगह को देव भूमि जैसा बना देता है।
आज हम चलते हैं इस मनोरम जगह पर और करते हैं 2000 वर्ष पुराने शिवलिंग के दर्शन। तो आइए शुरू करते हैं।
कुंडेश्वर महादेव मंदिर की यात्रा और विशेषता - Kundeshwar Mahadev Temple Tour and Specialties
पहाड़ों के बीच जंगली एरिया में स्थित महादेव का यह मंदिर लगभग 2000 वर्ष पुराना बताया जाता है। मंदिर तक जाने के लिए सड़क बनी हुई है।
मंदिर के ऊपर एक बहुत बड़ी जगह पर बरगद का विशाल पेड़ लगा हुआ है। इस पेड़ में जगह-जगह पर नई जड़ें निकल जाने की वजह से मूल जड़ का पता ही नहीं चलता है।
मंदिर के बाहर एक प्राचीन शिलालेख लगा हुआ है। यह शिलालेख 2000 वर्ष पहले के किसी परमार राजा के बारे में जानकारी देता है जिन्होंने इस स्थान पर तपस्या की थी।
कुंडा गाँव में होने की वजह से इस मंदिर को कुंडेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। ऐसा बताया जाता है कि ये शिवलिंग एक कुंड की खुदाई के दौरान मिला था।
मंदिर के गर्भगृह में विशाल शिवलिंग प्रतिष्ठित है। शिवलिंग के सामने नंदी विराजमान है। मंदिर का जीर्णोद्धार हो जाने के कारण अब इसकी मौलिकता खो गई है।
मंदिर के सामने बरगद के नीचे सफेद पत्थर से बने नंदी और गणेश जी की प्रतिमा रखी हुई है। पास में ही एक छोटा शिव मंदिर बना हुआ है।
इस शिव मंदिर के पास एक चौमुखी पत्थर के चारों तरफ अलग-अलग प्रतिमाएँ बनी हुई है। चार प्रतिमाओं वाला यह पत्थर काफी पुराना लगता है।
इस मंदिर के पास ही किसी संत की समाधि बनी हुई है। कहते हैं कि बहुत समय पहले इस जगह पर एक संत ने तपस्या के लिए जिंदा समाधि ली थी। ऐसा माना जाता है कि आज भी वो संत इस समाधि के अंदर तपस्या कर रहे हैं।
कुंडेश्वर महादेव मंदिर की गंगा नदी - Ganga River of Kundeshwar Mahadev Temple
मंदिर के बगल से एक नदी बह रही है जिसे गंगा नदी का स्वरूप माना जाता है। इस नदी का उद्गम स्थल यहाँ से लगभग एक किलोमीटर दूर है। उद्गम स्थल पर गंगा माता की मूर्ति स्थापित है।
ऐसा कहा जाता है कि गंगा माता यहाँ पर मीरा बाई के गुरु रविदास जी की विनती पर प्रकट हुई थी। उस समय से आज तक गंगा माता लगातार बह रही है।
कुंडेश्वर महादेव मंदिर के बगल में इस नदी पर कई घाट बने हुए हैं। नदी के इस जल को गंगाजल माना जाता है और इसे गंगाजी का चौथा पाया कहा जाता है।
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गंगा नदी का पानी पूरे वर्ष भर बहता रहता है। आस पास के लोग जो हरिद्वार नहीं जा सकते वे अपने परिजनों की अस्थियाँ इसी कुंड के पानी में प्रवाहित करते हैं।
यहाँ का पानी काफी पवित्र है इस बात का प्रमाण हमारे पास है। कहते हैं कि गंगाजल कभी खराब नहीं होता यानी इसमें कभी भी कोई जीव नहीं पैदा होता है।
हम भी इस नदी से एक बोतल पानी की भर कर लाए थे। यह पानी आज लगभग 10 महीनों के बाद भी एकदम साफ है और खराब नहीं हुआ है।
कुंडेश्वर महादेव मंदिर का झरना - Kundeshwar Mahadev Temple Waterfall
यह गंगा नदी यहाँ से कुछ आगे जाकर एक झरने के रूप में नीचे गिरती है। यह झरना इस जगह का सबसे बड़ा आकर्षण है। लोग इस झरने में नहाने के लिए आते रहते हैं।
झरने तक जाने के लिए मंदिर के सामने से पैदल जाने का रास्ता बना हुआ है। आगे इस रास्ते पर पानी बहता हुआ मिलता है। इस बहते हुए पानी से होकर आपको थोड़ा नीचे उतरना पड़ता है।
मंदिर के पास में ही माताजी का स्थान है जिस पर 36 कौम की कुल देवियाँ विराजमान है। यहाँ पर जो पूजा करते हैं वे बताते हैं कि इस झरने में कई जगह पर साँप रहते हैं।
जब हमने इस बात पर गौर किया तो हमने देखा कि झरने के नीचे गिरते पानी के नीचे चट्टान की दरारों में वास्तव में साँप मौजूद थे। अगर आप ढंग से देखेंगे तो आपको कुछ साँप दिखाई दे जाएँगे।
जब हमने इस बारे में कुंडेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी जी से बात की तो उन्होंने कहा कि यहाँ पर नदी के अंदर सभी जगह कई साँप रहते हैं लेकिन ये साँप कभी किसी को डसते नहीं है।
हो सकता है कि ये साँप किसी को डसते नहीं हों लेकिन फिर भी आपको यहाँ जाने पर पूरी तरह से सावधानी बरतनी चाहिए।
कुंडेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास - History of Kundeshwar Mahadev Temple
अगर इस मंदिर के इतिहास के बारे में बात करें तो यह मंदिर लगभग दो हजार वर्ष पुराना बताया जाता है। उस समय इस जगह पर परमार वंश के राजपूत राजाओं का शासन था।
ऐसा बताया जाता है कि इस जगह पर परमार वंश के एक राजा ने शिवजी की कठोर तपस्या की थी। राजा ने तपस्या को सफल करने के लिए अपना शीश काटकर महादेव को चढ़ा दिया था।
बाद में राजा की तपस्या के बारे में जानकारी देने वाला एक शिलालेख मंदिर में लगाया गया जो आज भी मंदिर के द्वार के पास लगा हुआ है।
कुंडेश्वर महादेव मंदिर के पास घूमने की जगह - Places to visit near Kundeshwar Mahadev Temple
कुंडेश्वर महादेव मंदिर के पास घूमने की जगह के बारे में अगर बात करें तो पास में ही सातवीं शताब्दी का विष्णु मंदिर, कुकड़ेश्वर महादेव मंदिर, घसियार के श्रीनाथजी, कैलाशपुरी के एकलिंगजी और नागदा का सास बहु मंदिर आदि घूमने के लिए बढ़िया जगह है।
कुंडेश्वर महादेव मंदिर कैसे जाएँ? - How to reach Kundeshwar Mahadev Temple?
अब बात करते हैं कि कुंडेश्वर महादेव के इस मंदिर तक कैसे जाएँ?
यह मंदिर उदयपुर से लगभग 32 किलोमीटर की दूरी पर कुंडा गाँव में बना हुआ है। यहाँ पर आप अपनी सहूलियत के हिसाब से दो रास्तों में से किसी एक से जा सकते हैं।
पहले रास्ते से जाने के लिए आपको उदयपुर से गोगुंदा जाने वाले नेशनल हाईवे पर घसियार के श्रीनाथजी मंदिर से थोड़ा सा आगे राइट टर्न लेकर किशनियावाड होते हुए जाना है।
आगे राजपूत बस्ती की तरफ ना जाकर लेफ्ट टर्न करना है। यहाँ से थोड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। ऊपर राइट टर्न लेकर सीधे कुंडेश्वर महादेव जाना है।
दूसरा रास्ता आप तब काम में ले सकते हैं जब आपको यहाँ से सीधा कैलाशपुरी की तरफ जाना हो या कैलाशपुरी से यहाँ आना हो।
यहाँ से कैलाशपुरी जाने के लिए आपको मंदिर से नीचे उतरकर राजपूत बस्ती से होकर कुछ किलोमीटर आगे जाकर राइट टर्न लेना है। आगे रामा गाँव होते हुए कैलाशपुरी जाना है।
कैलाशपुरी से यहाँ आने के लिए रामा गाँव होते हुए सीधे आना होगा। अगर आप यहाँ से कुकड़ेश्वर महादेव जाना चाहते हैं तो रामा गाँव से लेफ्ट टर्न लेकर आगे घाटी उतरकर जा सकते हैं।
अगर आप यहाँ पर बारिश के मौसम में या इसके तुरंत बाद में जाएँ तो आपको यहाँ पर बहते झरने के साथ सघन हरियाली देखने को मिलेगी।
तो आज के लिए बस इतना ही, उम्मीद है हमारे द्वारा दी गई यह जानकारी आपको पसंद आई होगी। ऐसी ही नई-नई जानकारियों के लिए हमसे जुड़े रहें।
जल्दी ही फिर मिलते हैं एक नई जानकारी के साथ। तब तक के लिए धन्यवाद, नमस्कार।