इस दर्रे से शुरू हुआ था हल्दीघाटी का युद्ध - Haldighati Ka Asli Darra, इसमें हल्दीघाटी युद्ध भूमि के उस असली दर्रे की जानकारी है जहाँ से युद्ध हुआ था।
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18 जून 1576 के दिन महाराणा प्रताप और मुग़ल बादशाह अकबर की सेना के बीच विश्व प्रसिद्ध हल्दीघाटी का युद्ध लड़ा गया।
इस युद्ध की वजह से हल्दीघाटी की जमीन पूरी दुनिया में इतनी अधिक फेमस है कि यहाँ पर देश विदेश से आने वाले पर्यटकों का ताँता लगा रहता है।
सभी टूरिस्ट हल्दीघाटी के उस मूल दर्रे को देखना चाहते हैं जहाँ से इस युद्ध की शुरुआत हुई थी। वास्तविक हल्दीघाटी के दर्रे का पता ना हो पाने की वजह से ज्यादातर लोग खमनौर से बलिचा जाने वाली सड़क पर एक जगह को हल्दीघाटी का दर्रा समझ लेते हैं।
दरअसल यह जगह हल्दीघाटी का मूल दर्रा नहीं है, हल्दीघाटी का मूल दर्रा तो यहाँ से लगभग चार पाँच सौ मीटर आगे सड़क के राईट साइड में शुरू होता है।
सबसे पहले तो हल्दीघाटी के बारे में हमें यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि हल्दीघाटी किसी एक जगह विशेष का नाम नहीं है। हल्दीघाटी, कुछ किलोमीटर में फैला हुआ वह जंगली एरिया है जिसमे कई घाटियाँ मौजूद है।
इस पूरे क्षेत्र को हल्दीघाटी इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहाँ की चट्टानों और घाटियों में पाई जाने वाली मिट्टी का रंग हल्दी की तरह पीला होता है।
दरअसल खमनौर के बादशाही बाग़ से बलिचा में मौजूद चेतक समाधि की तरफ जाने वाली सड़क पहाड़ी को काटकर बनाई गई है।
जैसे कि हमने बताया कि हल्दीघाटी की मिट्टी का रंग पीला है, इसलिए इस सड़क के दोनों तरफ कटी हुई पहाड़ी का रंग भी एकदम पीला है। यहाँ पर एक बोर्ड भी लगा हुआ है जिस पर हल्दीघाटी लिखा हुआ है।
जब भी कोई टूरिस्ट इधर से गुजरता है तो वह इस जगह को हल्दीघाटी का वह दर्रा समझ लेता है जहाँ पर महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच युद्ध की शुरुआत हुई थी।
लोग यहाँ की पीली मिट्टी को देखकर इसे हल्दीघाटी का मूल दर्रा समझ लेते हैं और कल्पना करने लग जाते हैं कि कि प्रकार पहाड़ी के दोनों तरफ भील सैनिकों ने मोर्चा संभाला होगा, किस तरह से अकबर की सेना उन भील सैनिकों के तीरों से बची होगी।
दरअसल यह जगह वो दर्रा है ही नहीं जहाँ पर भील सैनिकों ने मोर्चा संभाला था। हल्दीघाटी के युद्ध के समय में ना तो यह सड़क थी और ना ही यहाँ कोई रास्ता था। उस समय तो यह केवल एक पहाड़ी थी जिस पर पेड़ पौधे लगे हुए थे।
हकीकत यह है कि इस सड़क का हल्दीघाटी के युद्ध से कोई लेना देना नहीं है, लेकिन लोग सड़क के दोनों तरफ के पीले रंग को देखकर इसे ही दर्रा समझ लेते हैं।
पीला रंग तो हल्दीघाटी एरिया में लगभग सभी पहाड़ियों का है, अगर किसी दूसरी पहाड़ी को भी ऐसे काटा जायेगा तो वह भी पीले रंग की ही निकलेगी।
पुराने समय में यह सड़क नहीं थी और खमनौर से बलिचा की तरफ का आना जाना उस दर्रे के माध्यम से ही होता था।
बाद में समय के साथ जब रास्ते को चौड़ा करने की बात आई तब उस मूल दर्रे को उसके ऐतिहासिक स्वरूप में बनाये रखने के लिए इससे छेड़छाड़ ना करते हुए इस पहाड़ को काटकर सड़क को बनाया गया।
हल्दीघाटी का मूल दर्रा कौनसा है? - Which is the original pass of Haldighati?
अब जब यह क्लियर हो गया कि हल्दीघाटी मूल दर्रा यह नहीं है तो प्रश्न उठता है कि फिर मूल दर्रा कौनसा है?
हल्दीघाटी का मूल दर्रा इस कटी हुई सड़क से बलीचा की तरफ लगभग आधा किलोमीटर आगे जाने पर सड़क के राईट साइड से शुरू होता है।
यहाँ पर दर्रे के प्रारंभ होने का पुराना सा बोर्ड लगा हुआ है और आगे एक गेट बना हुआ है जिसमें पैदल जाने का रास्ता बना हुआ है।
इस गेट से अंदर कुछ आगे जाने पर हल्दीघाटी के उस मूल दर्रे की शुरुआत होती है जिसमें हल्दीघाटी के प्रसिद्ध युद्ध की शुरुआत हुई थी।
सूनसान घाटियों के बीच में से गुजरने वाले इस दर्रे की चौड़ाई कुछ फीट से अधिक नहीं है। मूल दर्रे को कुछ वर्ष पहले थोड़ा चौड़ा किया गया है।
ऐसा बताते हैं कि हल्दीघाटी के युद्ध के समय इस दर्रे की चौड़ाई मात्र इतनी ही थी कि इसमें से एक बार में सिर्फ एक घुड़सवार ही निकल सकता था।
महाराणा प्रताप के भील सैनिकों ने इस दर्रे के दोनों तरफ पहाड़ियों में पोजीशन ले रखी थी ताकि कम सैनिक भी ज्यादा मुग़ल सैनिकों को रोक पाए।
महाराणा प्रताप की छापामार युद्ध नीति तब तक सफल रही जब तक उनकी सेना इस दर्रे में लड़ती रही लेकिन जैसे सेना दर्रे से बाहर निकली, मुगलों का पलड़ा भारी पड़ने लगा गया।
हल्दीघाटी के इस मूल दर्रे के बारे में कुछ गिने चुने टूरिस्टों को ही पता होता है बाकी सभी उस पहाड़ी को काटकर बने गई सड़क को देखकर आगे बढ़ जाते हैं।
प्रशासन की अनदेखी की वजह से हल्दीघाटी का यह मूल दर्रा उपेक्षित पड़ा हुआ है। जहाँ पर दर्रा शुरू होता है, वह जगह आने जाने वालों को ढंग से दिखती भी नहीं है क्योंकि वहाँ पर कोई ऐसा बड़ा बोर्ड नहीं लगा हुआ है जो ढंग से दिखाई दे।
अगर इस जगह पर बड़ा बोर्ड लगा हो तो यह जगह आने जाने वालों को दिखेगी और लोग यहाँ पर रुक कर असली दर्रे की ऐतिहासिकता को महसूस कर पाएँगे।
अभी हो ये रहा है कि जो टूरिस्ट कटी हुई सड़क को दर्रा समझ कर लौट आते हैं, और बाद में जब उन्हें पता चलता है कि उन्होंने जो जगह देखी है वो तो हल्दीघाटी का दर्रा थी ही नहीं, तब वे अपने आपको काफी ठगा हुआ सा महसूस करते हैं।
प्रशासन को इस जगह को थोडा विकसित करना चाहिए ताकि टूरिस्ट इसे अन्दर से भी देख सकें क्योंकि अभी इसमें अन्दर जाने पर जंगली जानवरों का खतरा हो सकता है।
सोचिये, आप जिस हल्दीघाटी के दर्रे को देखने सैकड़ों किलोमीटर दूर से आते हैं, और जानकारी के अभाव में किसी दूसरी जगह को देख कर लौट जाते हैं तो आप पर क्या गुजरेगी।
यह आपके साथ तो अन्याय है ही, साथ ही महाराणा प्रताप की विरासत की अनदेखी भी है। इसलिए आप जब भी हल्दीघाटी जाएँ तो भ्रमित ना होकर हल्दीघाटी के मुख्य दर्रे को अन्दर से नहीं तो कम से कम बाहर से तो जरूर देख कर आयें।
हल्दीघाटी के दर्रे के पास घूमने की जगह - Places to visit near Haldighati Pass
अगर हम हल्दीघाटी के दर्रे के पास घूमने की जगहों के बारे में बात करें तो आप चेतक की समाधि, चेतक नाला, महाराणा प्रताप स्मारक, महाराणा प्रताप की गुफा, बादशाही बाग, रक्त तलाई आदि जगह देख सकते हैं।
हल्दीघाटी के दर्रे तक कैसे जाएँ? - How to reach Haldighati Pass?
अब हम बात करते हैं कि हल्दीघाटी के दर्रे तक कैसे जाएँ। हल्दीघाटी का दर्रा, खमनौर गाँव के पास हल्दीघाटी की पहाड़ियों में स्थित है।
उदयपुर रेलवे स्टेशन से यहाँ की दूरी लगभग 50 किलोमीटर है। उदयपुर से हल्दीघाटी के दर्रे तक जाने के लिए आपको उदयपुर-गोगुंदा हाईवे पर घसियार से आगे ईसवाल से राइट टर्न लेकर लोसिंग से बलीचा होकर जाना है।
बलीचा में चेतक स्मारक से कुछ आगे जाने पर राइट साइड में महाराणा प्रताप गुफा आती है। यहाँ से थोड़ा आगे जाने पर एक घुमाव पर लेफ्ट साइड में हल्दीघाटी के दर्रे का बोर्ड लगा हुआ है।
यहाँ पर इस दर्रे के संबंध में थोड़ी जानकारी भी दी हुई है। इस बोर्ड के पास से ही पीछे की तरफ रास्ता जाता है। आगे जाने पर दर्रे में जाने के लिए एक गेट आता है।
इस गेट से अंदर कुछ आगे जाने पर हल्दीघाटी के उस मूल दर्रे की शुरुआत होती है जिसमें हल्दीघाटी के प्रसिद्ध युद्ध की शुरुआत हुई थी।
दर्रे के बारे में टूरिस्टों को पता नहीं होने की वजह से आपको यहाँ पर कोई नहीं दिखेगा। अगर आप अकेले हैं तो आपको इसके अंदर नहीं जाना चाहिए क्योंकि अंदर कोई जंगली जानवर हो सकता है।
अंत में आपसे यही कहना है कि अगर आप वास्तव में उस पवित्र माटी को करीब से देखना चाहते हैं, जिसमें हल्दीघाटी के युद्ध की शुरुआत हुई थी तो आपको इस दर्रे को जरूर देखना चाहिए।
हल्दीघाटी के असली दर्रे की मैप लोकेशन - Map location of the original pass of Haldighati
हल्दीघाटी के असली दर्रे का वीडियो - Video of the original pass of Haldighati
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डिस्क्लेमर (Disclaimer)
इस लेख में दी गई जानकारी केवल शैक्षिक उद्देश्य के लिए है। इस जानकारी को विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से लिया गया है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
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