बादलों के बीच विराजे धोलिया जी - Dholiya Ji Gogunda Udaipur

बादलों के बीच विराजे धोलिया जी - Dholiya Ji Gogunda Udaipur, इसमें उदयपुर में गोगुंदा के पास धोलिया जी बावजी के पहाड़ के बारे में जानकारी दी गई है।

Dholiya Ji Gogunda Udaipur

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आज हम आपको कुंभलगढ़ के किले से भी ऊँचे पहाड़ की चोटी की यात्रा करवाने वाले हैं जिसका इस्तेमाल महाराणा प्रताप ने एक वाच टावर के रूप में किया था।

इसके साथ ही महाराणा प्रताप ने इसकी तलहटी में कुछ वर्षों तक निवास किया था। महाराणा प्रताप के महलों के अवशेष आज भी इस पहाड़ के आस पास के एरिया में दिखाई देते हैं।

इस पहाड़ की चोटी इतनी ज्यादा ऊँची है कि बारिश के मौसम में यहाँ से देखने पर चारों तरफ सफेद बादल ही बादल दिखाई देते हैं और सर्दी के मौसम में चारों तरफ सफेद कोहरा दिखाई देता है।

इसके साथ ही इस पहाड़ की सबसे ऊँची चोटी को भगवान का स्वरूप मानकर पूजा अर्चना भी की जाती है। तो आज इस पहाड़ की यात्रा करते हैं, आइए शुरू करते हैं।

धोलिया जी की यात्रा और विशेषता - Tour and Speciality of Dholiya Ji


इस पहाड़ को धोलिया पर्वत कहा जाता है जिसे धौलागर या धौलेगर पर्वत के नाम से भी जाना जाता है। समुद्र तल से इसके शिखर की ऊँचाई 3880 फीट है जो कि कुंभलगढ़ के शिखर से भी 280 फीट ऊँचा है।

इतनी अधिक ऊँचाई के साथ बारिश के मौसम में बादलों से घिरा होने की वजह से इसे मेवाड़ का माउंट आबू भी कहा जाता है।

जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया है कि इस पहाड़ की चोटी इतनी ज्यादा ऊँची है कि बारिश के मौसम में इसके नीचे की तरफ सफेद बादल दिखाई देते हैं और सर्दी के मौसम में सफेद कोहरा दिखाई देता है।

दूर तक सफेद रंग दिखाई देने की वजह से ही इस जगह का नाम धोलिया जी पड़ गया। अगर हम पहाड़ के नाम पर गौर करें तो पाएंगे कि धोलिया या धोलेगर शब्द का निर्माण धवल शब्द से हुआ है जिसका मतलब सफेद होता है।

धोलिया पहाड़ की सबसे ऊँची चोटी पर भेरुजी यानी कालाजी गोराजी की दो शिलाएं स्थापित हैं। इन शिलाओं को धोलिया जी बावजी यानी भेरुजी का स्थान मानकर पूजा जाता है।

यहाँ पर कई घंटियाँ लगी हुई हैं जिन्हें बजाने पर इनकी गूँज बहुत देर तक सुनाई पड़ती है। यहाँ से दूर-दूर तक बड़ा सुंदर दृश्य दिखाई देता है।


यह स्थान महाराणा प्रताप से जुड़ा होने के साथ पर्वतारोहण, सूर्योदय और सूर्यास्त के लिए बड़ा ही अच्छा है। धोलिया पर्वत के पश्चिम में ऊँचाई पर एक समतल मैदान है जिसे माल का क्षेत्र कहा जाता है।

युद्ध काल में महाराणा प्रताप अपनी सेना सहित इस माल क्षेत्र में रहे थे। आज भी धोलिया पर्वत की तलहटी में महाराणा प्रताप के महल के अवशेष मिलते हैं। महाराणा प्रताप के महल को रानी कोट कहा जाता था।

इस पहाड़ और इसके चारों तरफ दूर-दूर तक घना जंगल है जिसमें जंगली जानवर रहते हैं। पहाड़ की चोटी तक जाने के लिए सीमेंट की पक्की सड़क बनी हुई है।

ऐसा बताया जाता है कि पहाड़ के नीचे से ऊपर धोलिया जी के शिखर तक जाने वाली इस सड़क का निर्माण धोलिया जी के एक परम भक्त तुलसी राम या राम लाल प्रजापत ने अपने खुद के पैसे से करवाया है।

आप उस भक्त की आस्था को समझ सकते हैं जिसने इतने ऊँचे पहाड़ पर अपने पैसे से सड़क सिर्फ इसलिए बनवा दी ताकि दूसरे भक्त यहाँ आसानी से आ पाएं।

धोलिया जी का इतिहास - History of Dholiya Ji


अगर यहाँ के इतिहास की बात की जाए तो ऐसा बताया जाता है कि महाराणा प्रताप के समय धोलिया जी की ये दोनों शिलाएं एक ही थी और थोड़ी हवा में लटकी हुई थी। इनका हवा में लटकना एक चमत्कार माना जाता था।

ऐसा बताया जाता है कि महाराणा प्रताप की तलाश में मुगल बादशाह अकबर अपने सैनिकों के साथ धोलिया जी के इस पहाड़ पर आया था। अकबर जब इस शिला के पास गया तो सैनिकों ने उसे शिला के चमत्कार के बारे में बताया।

अकबर ने इसे अंधविश्वास बताकर शिला को गिराने के लिए महावत के साथ हाथी भेजा, लेकिन जैसे ही महावत ने शिला को गिराने के लिए हाथी की टक्कर मारी, तो उसी समय हाथी और महावत की मौत हो गई।

हाथी की टक्कर से शिला के भी दो फाड़ हो गए जिनमें बहुत सी छोटी मधुमक्खियाँ निकली और मुगल सैनिकों पर टूट पड़ी। मुगल सैनिकों को वहाँ से भागना पड़ा। इन मधुमक्खियों को आम भाषा में भमर बावजी कहते हैं।

बाद में जब गोगुंदा पर झाला राजवंश ने शासन किया तब राजराणा जसवंत सिंह ने उन दोनों शिलाओं की पूजा अर्चना की। उसी समय से इस स्थान को धोलिया जी बावजी (भेरुजी) का स्थान कहा जाता है।

कुछ लोग ऐसा भी बताते हैं कि इस स्थान पर धोलिया जी नाम के संत ने कई वर्षों तक तपस्या की थी। धोलिया जी संत की तपस्या स्थली होने की वजह से इस स्थान का नाम धोलिया जी पड़ गया।

धोलिया जी के पास घूमने की जगह - Places to Visit Near Dholiya Ji


धोलिया जी के पास घूमने की जगह के बारे में बात करें तो आप महासत्या स्थल पर महाराणा उदय सिंह और महाराणा खेता सिंह की छतरी, राणेराव तालाब, महाराणा प्रताप का राजतिलक स्थल आदि जगह देख सकते हैं।

धोलिया जी कैसे जाएँ? - How to Reach Dholiya Ji?


धोलिया जी का पहाड़ उदयपुर में गोगुंदा कस्बे के पास स्थित है। उदयपुर से गोगुंदा की दूरी लगभग 38 किलोमीटर और गोगुंदा से धोलिया जी की दूरी लगभग 8 किलोमीटर है।

यहाँ पर आपको खुद के साधन से जाना होगा। पहाड़ की चोटी तक सड़क बनी हुई है, आप कार या बाइक किसी से भी जा सकते हैं।

उदयपुर से गोगुंदा तक नेशनल हाईवे बना हुआ है। उदयपुर से सीधा धोलिया जी जाने के लिए आपको गोगुंदा से थोड़ा पहले हाईवे पर बने गवर्नमेंट कॉलेज से आगे लेफ्ट साइड में चलकर प्रताप सर्कल जाना होगा।

प्रताप सर्कल से गोगुंदा-ओगणा रोड पर कुछ किलोमीटर आगे तिराहे से राइट साइड में राणा गाँव की तरफ जाना होगा। कुछ आगे जाने पर एक तिराहा आता है जहाँ से आपको लेफ्ट लेना है और सीधा जाना है।

तिराहे पर राइट साइड से आने वाला रास्ता सीधा महाराणा उदय सिंह की छतरी वाली जगह से आता है। इस रास्ते पर कई जगह रोड की कंडीशन ठीक नहीं है। इधर से कार से आना थोड़ा मुश्किल है लेकिन बाइक से आसानी से आ सकते हैं।

अगर हम महाराणा उदय सिंह की छतरी से सीधा धोलिया जी जाना चाहें तो हमें वहाँ से चलकर इस तिराहे पर आना होगा।

इस तिराहे से आगे सीधा जाने पर धोलिया जी पहाड़ की तलहटी आ जाती है। यहाँ पर एक बोर्ड भी लगा है। इसके आगे लगभग दो-ढाई किलोमीटर की चढ़ाई चढ़नी पड़ती है।

यह सड़क जगह-जगह पर बहुत ज्यादा घुमावदार है। इस घुमावदार सड़क पर बाइक से ऊपर जाने में बड़ा मजा आता है। सड़क सीधी धोलिया जी के स्थान पर जाकर खत्म होती है।

अंत मे यही कहना है कि अगर आप पहाड़ पर घूमने के शौकीन हैं, अगर आप पहाड़ों के बीच नेचर को देखना चाहते हैं तो आपको धोलिया पहाड़ पर जरूर जाना चाहिए।

आज के लिए बस इतना ही, उम्मीद है हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको जरूर पसंद आई होगी। कमेन्ट करके अपनी राय जरूर बताएँ।

इस प्रकार की नई-नई जानकारियों के लिए हमारे साथ बने रहें। जल्दी ही फिर से मिलते हैं एक नई जानकारी के साथ, तब तक के लिए धन्यवाद, नमस्कार।

धोलिया जी की मैप लोकेशन - Map Location of Dholiya Ji



धोलिया जी का वीडियो - Video of Dholiya Ji



लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

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Ramesh Sharma

My name is Ramesh Sharma. I love to see old historical monuments closely, learn about their history and stay close to nature. Whenever I get a chance, I leave home to meet them. The monuments that I like to see include ancient forts, palaces, stepwells, temples, chhatris, mountains, lakes, rivers etc. I also share with you the monuments that I see through blogs and videos so that you can also benefit a little from my experience.

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