तीन पवित्र जल धाराओं के संगम पर त्रिवेणी धाम - Triveni Dham Shahpura, इसमें तीन पवित्र जल धाराओं के संगम स्थल यानी त्रिवेणी धाम की जानकारी दी गई है।
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जयपुर दिल्ली हाईवे पर शाहपुरा के निकट अरावली पर्वतमाला के बीच तीन नदियों के संगम स्थल पर त्रिवेणी धाम स्थित है। शाहपुरा से यहाँ की दूरी दस किलोमीटर एवं जयपुर से लगभग 72 किलोमीटर है।
यह स्थान कई सिद्ध महात्माओं की तपोस्थली के रूप में विख्यात है। यहाँ के प्रमुख संतों में गंगादासजी, जानकीदासजी, रामदासजी, भजनदासजी, भगवानदासजी और नारायणदासजी का नाम प्रमुख है।
इस स्थान पर तीन पवित्र जल धाराओं का संगम होता है जिस वजह से इसे त्रिवेणी के नाम से जाना जाता है। एक धारा जगदीशजी के पहाड़ों से, दूसरी पश्चिम की तरफ से एवं तीसरी धारा को यहाँ के संत गंगादासजी ने प्रकट किया था।
इसे धाराजी के नाम से जाना जाता है। त्रिवेणी का पानी इतना पावन है कि इसके स्पर्श मात्र से ही सभी पाप धुल जाते हैं। प्राचीन समय में इस क्षेत्र के लोगों के लिए त्रिवेणी धाम ही प्रयागराज के संगम की तरह एक पावन तीर्थ था।
यहाँ पर मुर्दों की अंत्येष्टि होने के साथ-साथ इनकी अस्थियाँ भी इस पानी में प्रवाहित की जाती थी। कहते हैं कि अपने अज्ञातवास के समय एक बार पांडव भी इस जगह पर आए थे और उन्होंने इस जल से अपनी तृष्णा शांत की थी।
इस वजह से इस स्थान को पांडव धारा या तृष्ण वेणी के नाम से भी जाना जाता है। पहले त्रिवेणी की धारा वर्ष भर बहती रहती थी लेकिन अब ये धारा सिर्फ बारिश के मौसम में ही नजर आती है।
त्रिवेणी धाम परिसर में कई धार्मिक स्थान हैं जिनमें नृसिंह मंदिर, श्री राम चरित मानस भवन, गंगा माता मंदिर, हनुमान मंदिर, विश्व प्रसिद्ध यज्ञशाला, अवधपुरी धाम आदि प्रमुख है।
विक्रम संवत 1795 में भरतदासजी काठिया के शिष्य ऋषिराज आचार्य गंगादासजी काठिया ने त्रिवेणी धाम की स्थापना की एवं यहाँ पर श्री नृसिंह स्वरुप शालिग्राम विग्रह भी स्थापित किया।
गंगादास जी त्रिवेणी के तट पर स्थित उस पहाड़ी पर बैठ कर प्रभु का चिंतन करते थे जहाँ पर जगत गुरु स्वामी रामानंदाचार्य जी महाराज की चरण पादुकाएँ मौजूद हैं।
विक्रम संवत 1814 की वैशाख सुदी चतुर्दशी के दिन गंगादासजी की आज्ञा से इनके शिष्य जानकी दास जी महाराज ने भगवान नृसिंह का मंदिर बनवाया एवं इसमें स्वहस्त निर्मित नृसिंह भगवान की मूर्ति की स्थापना की।
जानकी दास जी महाराज के बाद में रामदास जी महाराज ने विक्रम संवत 1909 तक एवं भजन दास जी ने विक्रम संवत 1984 तक इस पीठ को सुशोभित किया।
भगवान दास जी महाराज ने विक्रम संवत 1978 वैशाख छठ बुधवार के दिन नृसिंह मंदिर का नव निर्माण करवाकर श्री सीताराम जी के विग्रह को प्रतिष्ठित किया।
आज भी त्रिवेणी धाम में यह मंदिर भक्तों की मनोकामना को पूर्ण करता है। समय के गुजरने के साथ-साथ इस मंदिर को गढ़नृसिंह के नाम से भी जाना जाने लगा।
भगवान दास जी ने त्रिवेणी धाम गौशाला के पास में स्थित नृसिंह भगवान के भोग की जमीन को कृषि योग्य बनाकर उसमे विक्रम संवत 1988 में एक कुआँ खुदवाया था।
धाम में स्थित श्री राम चरित मानस भवन की दीवारों पर रामायण लिखी हुई है जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
त्रिवेणी धाम में अनेक यज्ञ हो चुके हैं जिनमें से कुछ तो 108 कुंडात्मक यज्ञ भी रहे हैं। यहाँ के सत्संग भवन के साथ-साथ मंदिर प्रांगण में भी श्रीराम नाम का संकीर्तन होता रहता है।
खोजीद्वाराचार्य ब्रह्मपीठाधीश्वर काठिया परिवाराचार्य श्री श्री 1008 नारायणदासजी महाराज ने इस स्थान को देश भर में पहचान दिलाई।
इन्होंने जनकल्याण एवं परोपकार के इतने अधिक कार्यों को अंजाम दिया जिसकी वजह से भारत सरकार ने इन्हें वर्ष 2018 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया।
वर्ष 2018 नारायण दासजी का स्वर्गारोहण हो जाने के पश्चात त्रिवेणी धाम में रामरिछपालदास जी महाराज की चादर पोशी हुई।
इस धाम को रामानंद सम्प्रदाय की खोजी पीठ के काठिया परिवाराचार्य के अंतर्गत माना जाता है तथा यहाँ के संतों को काठिया की उपाधि से विभूषित किया जाता रहा है।
यहाँ का सम्बन्ध रामानंद सम्प्रदाय एवं खोजी पीठ से किस तरह रहा है यह जानना जरूरी है। ऐसा माना जाता है कि श्री सम्प्रदाय की आधाचार्या श्रीजी (सीताजी) हैं जिन्हें इस सम्प्रदाय की प्रवर्तिका ऋषि कहा जाता है।
कालांतर में आचार्य रामानन्दजी के अथक प्रयासों से इस सम्प्रदाय का व्यापक प्रचार और प्रसार हुआ जिस वजह से श्री सम्प्रदाय को रामानंद सम्प्रदाय भी कहा जाने लगा।
गौरतलब है कि रामानन्दजी का जन्म 1299 ईस्वी और मृत्यु 1410 ईस्वी में हुई थी। इनका सम्पूर्ण जीवन तुगलक वंश के कार्यकाल में बीता था। इनकी मृत्यु के पश्चात इनकी जगह आने वाले सभी संतों को रामानंदाचार्य की पदवी से विभूषित किया जाने लगा।
काठिया परिवाराचार्य का सम्बन्ध रामानंद सम्प्रदाय के संत श्रीखोजीजी (राघवेंद्राचार्य) से रहा है। श्रीखोजीजी का जन्म सोलहवीं शताब्दी में हुआ था।
अठारहवीं शताब्दी में काठिया परिवाराचार्य ब्रह्मदासजी ने काठ का आड़बंध और कोपीन धारण किया एवं काठ के बर्तन ही काम में लिए जिससे प्रसन्न होकर संत समाज ने इन्हें काठिया की उपाधि दी और ब्रह्म पीठ की स्थापना हुई।
काठिया परिवार से सम्बंधित सभी संत काष्ठ के आड़बंध और कोपीन धारण करते हैं। मूल ब्रह्म पीठ कठिया खाक चौक डाकोर में थी एवं अन्य स्थान अवध धाम, त्रिवेणी धाम, जनकपुर धाम, काठियावाड आदि स्थानों पर है।
ब्रह्मदासजी के बाद इनके पौत्र एवं शिष्य भरतदासजी ने इस सम्प्रदाय को आगे बढाया। त्रिवेणी धाम की स्थापना करने वाले संत गंगादासजी इन्ही भरतदासजी के शिष्य थे जिसके कारण त्रिवेणी पीठ के सभी संत भी काठिया परिवाराचार्य संत कहलाए।
यह स्थान अत्यंत पावन है, तीर्थों में तीर्थ है। ऐसे सभी लोगों को जो हिन्दू धर्म में आस्था रखते हैं यहाँ अवश्य आना चाहिए।
त्रिवेणी धाम की मैप लोकेशन - Map Location of Triveni Dham
त्रिवेणी धाम का वीडियो - Video of Triveni Dham
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