गुफा में टपकेश्वर महादेव का स्वयंभू शिवलिंग - Tapkeshwar Mahadev Neemkathana, इसमें नीमकाथाना के पास पहाड़ियों में टपकेश्वर महादेव गुफा की जानकारी है।
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राजस्थान की मिट्टी वीर रणबांकुरों की भूमि होने के साथ-साथ अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहरों के लिए भी जानी जाती है।
यहाँ की भूमि में प्रत्येक पंद्रह बीस किलोमीटर की दूरी पर कोई ना कोई ऐतिहासिक या धार्मिक स्थल मिल जाएगा। ऐसे ही ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों से भरी पड़ी है शेखावाटी की भूमि।
नीमकाथाना जिले में ऐसे ही तीन प्रमुख दर्शनीय स्थल है जो ऐतिहासिक एवं धार्मिक रूप से विश्व विख्यात हैं। इनका नाम है गणेश्वर, टपकेश्वर और बालेश्वर।
आज हम आपको इनमें से एक, टपकेश्वर महादेव मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका आस्था के साथ-साथ ऐतिहासिक रूप से भी काफी अधिक महत्व है।
यह स्थल नीमकाथाना शहर से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर टोडा ग्राम से चार पाँच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
अरावली की सुरम्य पहाड़ियों से घिरा होने के कारण यहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य आँखों को बड़ा अजीब सा सुकून देता है।
पहाड़ी के मध्य में स्थित भोलेनाथ का मंदिर इस प्रकार प्रतीत होता है जैसे भगवान शिव स्वयं कैलाश पर विराजमान होकर तपस्या में बैठे हों।
पहाड़ी की तलहटी में नीचे बहती हुई कांसावती (कृष्णावती) नदी ऐसे प्रतीत होती है जैसे यह स्वयं भगवान शिव का अभिषेक करने के लिए लालायित हो रही हो।
इस नदी के बहाव क्षेत्र में एक गूलर का पेड़ स्थित है। इस पेड़ की खास बात यह है कि इसकी जड़ों में से बारह महीनों लगातार पानी बहता रहता है। यह पानी जंगली जानवरों की प्यास बुझाने के काम आता है।
किसी जमाने में बारह महीने बहने वाली यह नदी अब केवल बारिश के मौसम में ही प्रवाहित होती है। मंदिर तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई है।
मंदिर में पहुँचने पर एक बड़े से द्वार में से होकर गुजरना पड़ता है। इस द्वार के आगे पक्का आँगन बना हुआ है। द्वार के बाहर ठीक सामने की तरफ एक छतरी बनी हुई है।
द्वार के अन्दर जाकर आस पास के प्राकृतिक सौन्दर्य को निहारा जा सकता है। अन्दर एक कमरा जिसमें तपस्या के लिए धूणा बना है। इस कमरे के पास में ही भोलेनाथ शिव की वह गुफा है जिसमें स्वयं भोलेनाथ टपकेश्वर महादेव के रूप में मौजूद हैं।
गुफा में दो शिवलिंग हैं जिनमें से एक काले पत्थर का तथा दूसरा सफेद पत्थर का है। दोनों पर हमेशा नैसर्गिक रूप से पहाड़ी के जल द्वारा अभिषेक होता रहता है।
पहाड़ी से जल लगातार शिवलिंग पर टपकता रहता है इस कारण ही इस स्थान को टपकेश्वर महादेव कहा जाता है।
काले पत्थर का शिवलिंग स्वयंभू शिवलिंग है जो पहाड़ी की चट्टान से बना हुआ है। दूसरा शिवलिंग इस क्षेत्र के तोमर राजा अचल सिंह ने स्थापित करवाया था इस वजह से इसे अचलेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
स्वयंभू शिवलिंग आदिकाल का बना हुआ माना जाता है। इस स्थान का जिक्र शिव पुराण में भी दिया हुआ है।
यह स्थान विराटनगर (बैराठ) से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास का कुछ समय इन तीनों जगहों पर भी बिताया था।
किसी समय यहाँ अचलगढ़ नामक राज्य था जिस पर राजा अचल सिंह शासन करते थे। पास ही पहाड़ी पर अचलगढ़ का किला जीर्ण शीर्ण हालत में मौजूद है। इस किले के निकट बाँस के बड़े बड़े पेड़ मौजूद है।
इस क्षेत्र में बहुत से पैंथर मौजूद है। बहुत बार ये पैंथर मंदिर में भी आकर बैठ जाते हैं। कई बार इन्हें मंदिर की सीढ़ियों से उतरते भी देखा गया है। इसी वजह से रात्रि में यहाँ कोई रहता नहीं है।
श्रावण के महीने में तथा महाशिवरात्रि के त्यौहार के समय टपकेश्वर, बालेश्वर तथा गणेश्वर तीनों जगहों पर लाखों श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है।
टपकेश्वर महादेव मंदिर की मैप लोकेशन - Map Location of Tapkeshwar Mahadev Mandir
टपकेश्वर महादेव मंदिर का वीडियो - Video of Tapkeshwar Mahadev Mandir
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