इस मंदिर में मेवाड़ के महाराणाओं का जाना है मना - Rupnarayan Mandir Sevantri, इसमें सेवन्त्री कस्बे के महाभारत कालीन रूपनारायण मंदिर की जानकारी है।
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आज हम आपको एक ऐसे मंदिर में लेकर जाने वाले हैं जो पांडवों के समय का बना हुआ है और जिसमें अपने अज्ञातवास के समय पांडवों ने पूजा अर्चना की थी।
इस मंदिर के मूल मंदिर को बिना छेड़े इसके ऊपर एक भव्य और विशाल मंदिर बना हुआ है। ऐसा आपने कहीं पर भी नहीं देखा होगा कि एक मंदिर के ऊपर दूसरा मंदिर बना हो।
मूल मंदिर में गर्भगृह के शिखर के ऊपर एक और शिखर बना हुआ है, साथ ही इसका सभा मंडप भी दो मंजिल का है जिसमें ऊपर की मंजिल चारों तरफ से खुली है।
इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेष बात यह है कि इसमें भगवान कृष्ण अपनी दोनों रानियों रुक्मणी और सत्यभामा के साथ चतुर्भुज रूप में विराजमान हैं।
यह मंदिर इसलिए भी खास है क्योंकि भगवान कृष्ण के साथ रुक्मणी और सत्यभामा की प्रतिमा देश के कुछ गिने चुने मंदिरों में ही दिखाई देती है यानी ना के बराबर है।
ये वही मंदिर है जिसमें पुजारी की बात को सच्चा साबित करने के लिए भगवान ने अपने बाल सफेद कर लिए और पुजारी को राजा के क्रोध से बचाया।
तो आज हम भगवान कृष्ण के इस चमत्कारी मंदिर में चलकर इसकी इन सभी विशेषताओं को करीब से जानते हैं, आइए शुरू करते हैं।
रूपनारायण मंदिर की यात्रा और विशेषता - Tour and Speciality of Roopnarayan Mandir
अरावली की पहाड़ियों के बीच एक छोटे से कस्बे में बना यह मंदिर चारों तरफ से एक मजबूत परकोटे से घिरा हुआ है। मंदिर के बाहर दो बड़े हाथियों की प्रतिमा बनी हुई है।
मूल मंदिर छोटा है जिसे पांडवों के समय का बताया जाता है। समय के साथ मूल मंदिर के गर्भगृह के चारों तरफ एक बड़ा गर्भगृह और उसका शिखर बनाया गया जिसकी वजह से मूल मंदिर का शिखर पूरी तरह से छिप गया।
अगर आप सभामंडप की छत पर जाकर देखेंगे तो वहाँ पर मूल मंदिर के शिखर की तरफ जाने का रास्ता बना हुआ है। बाहर से देखने पर मूल मंदिर का शिखर दिखाई नहीं देता है।
मूल मंदिर के गर्भगृह के अंदर भगवान कृष्ण अपने द्वारकाधीश मंदिर के जैसे स्वरूप यानी चतुर्भुज रूप में विराजमान है।
इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि भगवान अपने चतुर्भुज रूप में अकेले ना होकर अपनी दो रानियों रुक्मणी और सत्यभामा के साथ हैं।
भगवान के लेफ्ट साइड में सत्यभामा और राइट साइड में रुक्मणी विराजमान है। इसमें रुक्मणी अपने सुंदर स्वरूप में जबकि सत्यभामा अपने कुरूप स्वरूप में है।
आपको बता दें कि रुक्मणी और सत्यभामा, दोनों ही लक्ष्मीजी का रूप हैं। दरअसल दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण लक्ष्मीजी का अगला जन्म बदसूरत सत्यभामा के रूप में हुआ था।
भगवान कृष्ण के 16 चतुर्भुज रूप बताए जाते हैं जो भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप से थोड़े अलग होते हैं।
भगवान विष्णु के चतुर्भुज स्वरूप के हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म यानी कमल होता है जबकि भगवान कृष्ण के हाथों में कमल की जगह तुलसी की माला होती है।
गर्भगृह के बाहर सुंदर सभामंडप बना हुआ है जिसकी छत स्तंभों पर टिकी हुई है। पत्थर से बने हुए इन खंभों की कुल संख्या 52 बताई जाती है।
सभामंडप के अंदर गरुड़ की प्रतिमा है जिसके पीछे महाराणा उदय सिंह के समय रहे मंदिर के पुजारी देवाजी पंडा की प्रतिमा है।
देवाजी पंडा की प्रतिमा के पीछे हाथी पर विराजमान बलुन्दा ठिकाने के राव जगत सिंह की प्रतिमा है। राव जगत सिंह, मीरा बाई के भतीजे थे और उन्हीं की तरह कृष्ण भक्त थे।
इन्होंने मंदिर के विकास में बहुत बड़ा योगदान दिया था। कहते हैं कि मंदिर के बड़े शिखर के साथ भव्य सभामंडप का निर्माण इन्होंने ही करवाया था।
सभामंडप दो मंजिला है जिसकी छत पर सुंदर नक्काशी की हुई है। ऊपरी मंजिल चारों तरफ से खुली हुई है। मंडप में ऊपर जाने के लिए पत्थर की एक ही शिला को काटकर सीढ़ियाँ बनाई गई है।
इन सीढ़ियों से ऊपर जाने पर शिखर के अंदर से मूल मंदिर के छोटे शिखर की तरफ जाने का रास्ता बना हुआ है। इस रास्ते के ऊपर के पत्थर पर कुछ लिखा हुआ है। इस शिलालेख को विक्रम संवत 1019 का बताया जाता है।
मंदिर का पुराना नाम रूप चतुर्भुज था, जो समय के साथ बदलकर रूपनारायण मंदिर हो गया। ऐसा माना जाता है कि चारभुजानाथ के दर्शन के बाद अगर यहाँ दर्शन नहीं किए तो दर्शन अधूरे रह जाते हैं।
रूपनारायण मंदिर की प्रतिमा - Idol of Roopnarayan Mandir
मंदिर की प्रतिमा के बारे में बात करें तो ऐसा बताया जाता है कि हजारों वर्ष पहले शबरी नाम की भील औरत को एक तलाई के पास घास में दबी रूपनारायण जी की मूर्ति मिली।
शबरी ने कुछ समय तक इसकी अपने घर में पूजा अर्चना की। बाद में इसे एक चबूतरे पर स्थापित किया गया। धीरे-धीरे इस चबूतरे पर मंदिर का विकास होता गया।
ऐसा माना जाता है कि शबरी को जो मूर्ति मिली थी, वो मूर्ति वही है जिसे श्रीकृष्ण ने बनवाकर सुदामा को दी थी।
आपको बता देते हैं कि श्रीकृष्ण ने गौलोक जाने से पहले अपनी दो मूर्ति बनवाई थी जिनमें से एक पांडवों को और दूसरी सुदामा को दी थी।
रूपनारायण मंदिर का इतिहास - History of Roopnarayan Mandir
अगर मंदिर के इतिहास के बारे में बात करें तो रूपनारायणजी का मूल मंदिर पांडवों के समय का माना जाता है। मंदिर की छत पर विक्रम संवत 1019 का एक शिलालेख भी लगा हुआ है।
बाद में चौदहवीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण मेवाड़ के महाराणा हम्मीर सिंह ने करवाया था। एकलिंगजी के शिलालेख में महाराणा हम्मीर सिंह द्वारा रूपनारायण मंदिर के निर्माण के बारे में बताया गया है।
विक्रम संवत 1711 में मारवाड़ के बलुन्दा ठिकाने के भक्तराव जगत सिंह ने इस मंदिर को काफी बड़ा और भव्य बनवाया। मंदिर का बड़ा शिखर और दो मंजिला सभामंडप इन्होंने ही बनवाया था।
इस मंदिर का इतिहास महाराणा सांगा से भी जुड़ा है। 1504 ईस्वी में अपने भाइयों से चल रहे संघर्ष में एक बार संग्राम सिंह घायल होकर मंदिर में शरण लेने आए थे।
तब बीदा राठौड़ ने अपने भाई के साथ इनकी रक्षा करते हुए अपने प्राण त्यागे। मंदिर की परिक्रमा में बीदा राठौड़ की छतरी बनी हुई है जिसमें तीन स्मारक स्तम्भ खड़े हैं।
रूपनारायण मंदिर के भक्त देवाजी पंडा की कहानी - Story of Bhakt Devaji Panda of Roopnarayan Mandir
सत्रहवीं शताब्दी में लिखे भक्तमाल ग्रंथ में 1561 ईस्वी की एक घटना का वर्णन है। उस समय मेवाड़ पर महाराणा उदय सिंह का राज था।
महाराणा उदय सिंह, भगवान रूपनारायण जी के दर्शन करने ज्यादातर रात्रि में आया करते थे। एक बार महाराणा को आने में देर हो गई।
शयन का समय जानकर मंदिर के बुजुर्ग पुजारी देवाजी पंडा ने ठाकुरजी को शयन करा कर पट बंद कर दिए और माला अपने गले में डाल ली।
उसी समय महाराणा उदय सिंह आ गए लेकिन भगवान का शयन हो जाने की वजह से उन्हें दर्शन नहीं हुए। पुजारी ने अपने गले से माला निकाल कर महाराणा को पहना दी।
इस माला में पुजारी का एक सफेद बाल भी अटककर चला गया जिसे देख कर महाराणा ने पुजारी से पूछा कि क्या भगवान के बाल सफेद हो गए हैं?
पुजारी के मुँह से घबराहट में हाँ निकल गया। ये सुनकर महाराणा ने कहा कि मैं सुबह आकर दर्शन करूंगा।
पुजारी रात भर चिंता में पड़ा सोचता रहा कि अब क्या होगा? सुबह महाराणा को जब सच्चाई का पता चलेगा तो बड़ा अपमान होगा? तब पुजारी ने भगवान का ध्यान लगा कर उनसे सफेद केश धारण करने की विनती की।
सुबह जब पुजारी ने मंदिर में भगवान को सफेद केश धारण किए हुए पाया तो वो भाव विभोर होकर रोने लग गया। इतने में महाराणा उदय सिंह भगवान के दर्शन के लिए आ गए।
पुजारी को रोते देख उन्होंने सोचा कि पुजारी ने रात को जो झूठ बोला था और अब उसके पकड़े जाने के डर से रो रहा है।
जब महाराणा ने भगवान के बाल सफेद देखें तो उन्होंने सोचा कि पुजारी ने अपने झूठ को सच साबित करने के लिए कहीं से सफेद बाल लाकर भगवान के चिपका दिए हैं।
महाराणा ने भगवान का एक बाल उखाड़ लिया। बाल उखड़ते ही भगवान ने अपनी नाक सिकोड़ी और उसमें से खून बहने लगा। महाराणा उदय सिंह ये देखकर बेहोश हो गए।
जब उन्हे होश आया तो उन्होंने भगवान से माफी मांगी। तब रूपनारायणजी ने महाराणा को आज्ञा दी कि आज के बाद कोई भी महाराणा उनके दर्शन करने मंदिर में नहीं आए।
उस समय के बाद से मेवाड़ का कोई भी महाराणा राजगद्दी पर बैठने के बाद रूपनारायण मंदिर में भगवान के दर्शन करने के लिए नहीं आता है।
रूपनारायण मंदिर के पास घूमने की जगह - Places to visit near Roopnarayan Mandir
अगर रूपनारायण मंदिर के पास घूमने की जगह के बारे में बात करें तो आप लक्ष्मण झूला, चारभुजा मंदिर, रोकड़िया हनुमान मंदिर आदि देख सकते हैं।
रूपनारायण मंदिर कैसे जाएँ? - How to go Roopnarayan Mandir?
अब हम बात करते हैं कि रूपनारायण मंदिर कैसे जाएँ?
रूपनारायण मंदिर राजसमंद जिले के सेवन्त्री कस्बे के अंदर बना हुआ है। उदयपुर रेल्वे स्टेशन से यहाँ की दूरी लगभग 110 किलोमीटर और राजसमंद शहर से लगभग 48 किलोमीटर है।
आपको उदयपुर से यहाँ जाने के लिए राजसमंद से आगे गोमती चौराहे से लेफ्ट साइड में देसूरी रूट पर जाना होगा। धोदीयावास से आगे गढ़बोर होते हुए सेवन्त्री जाना होगा।
अगर आप घूमने फिरने के साथ-साथ हमारी प्राचीन धार्मिक धरोहरों के इतिहास और उनकी शिल्पकला को जानने में रुचि रखते हैं तो आपको यहाँ जरूर जाना चाहिए।
आज के लिए बस इतना ही, उम्मीद है हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको जरूर पसंद आई होगी। कमेन्ट करके अपनी राय जरूर बताएँ।
इस प्रकार की नई-नई जानकारियों के लिए हमारे साथ बने रहें। जल्दी ही फिर से मिलते हैं एक नई जानकारी के साथ, तब तक के लिए धन्यवाद, नमस्कार।
रूपनारायण मंदिर की मैप लोकेशन - Map Location of Roopnarayan Mandir
रूपनारायण मंदिर का वीडियो - Video of Roopnarayan Mandir
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