राणी सती दादी माता का मंदिर - Rani Sati Mandir Jhunjhunu

राणी सती दादी माता का मंदिर - Rani Sati Mandir Jhunjhunu, इसमें स्त्री शक्ति की प्रतीक राणी सती दादी के झुंझुनू में स्थित मंदिर के बारे में जानकारी है।

Rani Sati Mandir Jhunjhunu

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शेखावाटी के झुंझुनू शहर के बीचों-बीच स्त्री शक्ति की प्रतीक और माँ दुर्गा के अवतार के रूप में पहचाने जाने वाली रानी (राणी) सती का मंदिर स्थित है। रानी सती को रानी सती दादी के नाम से भी जाना जाता है।

यह मंदिर झुंझुनू रेलवे स्टेशन से दो किलोमीटर और बस स्टैंड से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर लगभग 400 वर्ष पुराना बताया जाता है।

संगमरमर से निर्मित यह मंदिर बाहर से देखने पर किसी भव्य राजमहल जैसा आभास देता है। इसकी बाहरी दीवारों पर सुन्दर चित्रकारी की हुई है।

मंदिर के मुख्य द्वार से अन्दर प्रवेश कर जब चारों तरफ नजर दौड़ाते हैं तो चारों तरफ ऊँचे-ऊँचे विशाल भवन बने हुए हैं।

बीच के अन्दर खाली जगह है एक सुन्दर बगीचा एवं एक भवन से दूसरे भवन की तरफ जाने के लिए छायादार रास्ता बना हुआ है।

सामने की तरफ बने प्रवेश द्वार से आगे जाने पर पहले की तरह एक और परिसर है जिसके चारों तरफ भवन और बीच में शिव, गणेश, राम-सीता, हनुमान, लक्ष्मीनारायण आदि मंदिर बने हुए हैं।

परिसर में षोडश माता का मंदिर भी बना हुआ है जिसमें 16 देवियों की मूर्तियाँ लगी हुई है। साथ ही एक बगीचे (हरि बगीची) के अन्दर भगवान शिव की बड़ी प्रतिमा स्थित है।

यहाँ से आगे एक और प्रवेश द्वार है जिसमें से प्रवेश कर आगे जाने पर रानी सती का मुख्य मंदिर आता है। मुख्य मंदिर काफी भव्य है। मंदिर के गर्भगृह में कोई मूर्ति नहीं है और यहाँ पर ताकत के प्रतीक त्रिशूल की पूजा की जाती है।

मुख्य मंडप में रानी सती की एक तस्वीर लगी हुई है। रानी सती मंदिर की गणना भारत के सबसे अधिक अमीर मंदिरों में की जाती है। यहाँ पर बाथरूम भी वातानुकूलित हैं।

दर्शनों के लिए मंदिर सुबह 5 बजे से दोपहर एक बजे तक और शाम 3 बजे से रात्रि 10 बजे तक खुला रहता है। मंदिर में श्रद्धालुओं के निवास के लिए विशाल आवास उपलब्ध है। अल्पाहार के लिए कैंटीन एवं भोजन के लिए भोजनालय की भी व्यवस्था है।

वर्ष के प्रत्येक भाद्रपद माह की अमावस्या (भादी अमावस्या) के दिन यहाँ पर भादो उत्सव (भादी उत्सव) मनाया जाता है जो कि सम्पूर्ण भारतवर्ष में प्रसिद्ध है।


भाद्रपद माह की अमावस्या की खासियत यह होती है कि इस दिन धार्मिक कार्यों के लिए कुश (दूब, घास) एकत्रित की जाती है।

ऐसी मान्यता है कि अगर इस दिन धार्मिक कार्यों में इस्तेमाल की जाने वाली कुश एकत्रित की जाए तो वह पूरे वर्ष फलदाई होती है। इसीलिए इस अमावस्या को कुशग्रहणी या कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा जाता है।

रानी सती के इस मंदिर के साथ इनकी एक कथा भी जुड़ी हुई है जो इस प्रकार से है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार जब महाभारत के युद्ध में अर्जुन पुत्र अभिमन्यु वीर गति को प्राप्त हो गए थे तब अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा ने अभिमन्यु की चिता के साथ सती होने का निर्णय लिया।

भगवान कृष्ण ने उत्तरा को सती होने से रोका, तब उत्तरा ने उनसे अगले जन्म में अभिमन्यु की पत्नी बनने की विनती की। तब भगवान कृष्ण ने उत्तरा को वरदान दिया कि उसकी यह इच्छा कलयुग में पूरी होगी और तब वह नारायणी के नाम से विख्यात होगी।

भगवान कृष्ण के उसी वरदान के फलस्वरूप आज से सात सौ वर्षों से भी अधिक समय पूर्व उत्तरा का जन्म डोकवा (Dokwa) गाँव के सेठ गुरसामल (Gursamal) की पुत्री नारायणी (Narayani) के रूप में और अभिमन्यु का जन्म हिसार के सेठ जालीराम (Jaliram) के पुत्र तनधन (Tandhan ) के रूप में हुआ।

नारायणी बाई को बचपन में धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ युद्ध कला और घुड़सवारी की शिक्षा भी दी गई थी। बचपन से ही इनमें कई चमत्कारी शक्तियाँ नजर आती थी।

युवावस्था में नारायणी बाई का विवाह तनधन के साथ संपन्न हुआ। तनधन घोड़ों का व्यापार करते थे। इनके यहाँ राणाजी (Caretaker of Horse) नामक व्यक्ति घोड़ों की देखभाल का कार्य करता था।

हिसार के राजकुमार को इनके घोड़ों में से एक घोड़ा पसंद आ गया। उसने तनधन से घोड़ा देने को कहा जिसे तनधन ने ठुकरा दिया। जबरन घोड़े को ले जाने की बात पर राजकुमार और तनधन में युद्ध हुआ जिसमें राजकुमार मारा गया।

जब राजा को अपने पुत्र के मारे जाने का पता चला तो वह सेना लेकर तनधन के पास आया और उसने नारायणी के सामने तनधन की हत्या कर दी।

नारायणी को क्रोध आ गया और उसने माँ दुर्गा की भाँति प्रचंड रूप धारण कर राजा और उसके सभी सैनिकों को मार डाला।

इसके पश्चात नारायणी बाई ने अपने पति के साथ सती होने का संकल्प लेकर राणाजी से इसका प्रबंध करने को कहा।

राणाजी ने नारायणी की इस इच्छा का पालन किया जिससे प्रसन्न होकर नारायणी ने राणाजी को आशीर्वाद दिया कि भविष्य में सती के नाम से पहले उसका नाम लिया जाएगा।

इसी आशीर्वाद के फलस्वरूप सती के नाम के पहले राणी (रानी) लगाया जाता है। तत्पश्चात विक्रम संवत् 1352 (1295 ईस्वी) में मार्गशीर्ष शुक्ल नवमी के दिन नारायणी ने सती होकर देवलोक गमन किया।

राणी सती मंदिर की मैप लोकेशन - Map Location of Rani Sati Mandir



राणी सती मंदिर का वीडियो - Video of Rani Sati Mandir



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Ramesh Sharma

My name is Ramesh Sharma. I am a registered pharmacist. I am a Pharmacy Professional having M Pharm (Pharmaceutics). I also have MSc (Computer Science), MA (History), PGDCA and CHMS. Being a healthcare professional, I want to educate people to live a healthy life by providing health education to them. I also aware people about their lifestyle and eating habits by providing healthcare and wellness tips. Being a creator, I provide useful healthcare information in the form of articles and videos on various topics such as physical, mental, social and spiritual health, lifestyle, eating habits, home remedies, diseases and medicines. Usually, I travel at hidden historical heritages to feel the glory of our history. I also travel at various beautiful travel destinations to feel the beauty of nature.

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