अपनी जान देकर बचाये महाराणा प्रताप के प्राण - Jhala Man Singh, इसमें हल्दीघाटी युद्ध के योद्धा बड़ी सादड़ी के झाला मान के बारे में जानकारी दी गई है।
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हल्दीघाटी के युद्ध में जब महाराणा प्रताप मुगल सेना से चारों तरफ से घिर गए थे और बच निकलने का कोई रास्ता नहीं बचा था, तब उनके एक सेनानायक झाला मान ने उनकी जगह अपने प्राणों का बलिदान देकर महाराणा प्रताप को बचाया।
अब आपके मन में प्रश्न उठ रहा होगा कि झाला मान ने किस तरह से महाराणा प्रताप की जान बचाई? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमें पूरे घटनाक्रम को समझना होगा।
हुआ यूँ कि 18 जून 1576 के दिन, जब हल्दीघाटी का युद्ध अपने चरम पर था, उसी समय महाराणा प्रताप ने भाले से अकबर के सेनापति मान सिंह पर हमला किया।
इस हमले में मान सिंह बच गया लेकिन उसका महावत मारा गया। इसके साथ ही मान सिंह के हाथी की सूंड पर बंधी तलवार से चेतक का पिछला एक पैर घायल हो गया।
मुगलों ने महाराणा प्रताप के चारों तरफ मजबूत घेरा बनाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे महाराणा प्रताप दुश्मन के सैनिकों से चारों तरफ से घिर गए।
ऐसे समय स्थिति की गंभीरता को देखकर झाला मान ने, मुग़ल सैनिकों को चकमा देकर महाराणा प्रताप को उनके घेरे से सुरक्षित निकालने के लिए उनकी जगह खुद ने मेवाड़ के राज्य चिन्ह धारण कर युद्ध करना शुरू कर दिया।
झाला मान, कद काठी और शक्ल सूरत में महाराणा प्रताप से काफी मिलते जुलते थे। मेवाड़ के राज्य चिन्ह धारण करके लड़ने वाले झाला मान को सभी मुग़ल सैनिक महाराणा प्रताप समझ बैठे और उन पर हमला तेज कर दिया।
सभी मुग़ल सैनिकों का ध्यान झाला मान की तरफ चले जाने की वजह से महाराणा प्रताप को युद्ध क्षेत्र से बाहर निकल जाने का मौका मिल गया। चारों तरफ से मुगलों से लड़ते-लड़ते अंत में झाला मान ने अपने प्राण त्याग दिए।
जब आपको ये पता चलता है कि किस तरीके से झालामान ने अपनी जान देकर महाराणा प्रताप की जान बचाई, तब इनके लिए आपका मन आदर से भर जाता है।
लेकिन जब आपको ये पता चले कि ऐसा बलिदान झाला मान की कई पीढ़ियों ने महाराणा प्रताप की कई पीढ़ियों के लिए दिया है, तब आपका मन इन लोगों के बारे में और अधिक जानने को जरूर करेगा।
चलिए हम झालामान के परिवार और इनके इतिहास के बारे में थोड़ा और जानते हैं।
झाला मान सिंह का सम्बन्ध बड़ी सादड़ी ठिकाने के उस झाला कुल से था जिसकी लगातार सात पीढ़ियों ने मेवाड़ के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया।
इन सात पीढ़ियों में झालामान के पहले चार और बाद में दो पीढ़ियाँ, मेवाड़ के महाराणाओं की जान बचाते हुए वीरगति को प्राप्त हुई थी।
जिस प्रकार झाला मान ने हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप को युद्ध भूमि से निकालने के लिए उनकी जगह अपने प्राणों का बलिदान दिया, ठीक उसी तरह झाला मान के दादा झाला अज्जा ने भी खानवा के युद्ध में राणा सांगा को युद्ध भूमि से निकालने के लिए उनकी जगह अपने प्राणों का बलिदान दिया।
ऐसा लगता है कि पोते ने अपने दादा से सीखकर इतिहास को दोहरा दिया। बड़ी सादड़ी के इन झाला सरदारों की सभी सात पीढ़ियों के बलिदान को हम सीरियल वाइज समझते हैं।
इस वंश की पहली पीढ़ी के रूप में झाला अज्जा ने 1527 ईस्वी में बाबर से हुए खानवा के युद्ध में राणा सांगा को बचाते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया।
दूसरी पीढ़ी के रूप में झाला अज्जा के पुत्र झाला सिंहा ने महाराणा साँगा के पुत्र महाराणा विक्रमादित्य के समय 1535 ईस्वी में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह के चित्तौड़गढ़ पर किये आक्रमण के समय लड़ते हुए अपने प्राण त्यागे।
तीसरी पीढ़ी के रूप में झाला सिंहा के पुत्र झाला आसा ने महाराणा उदयसिंह की 1540 ईस्वी में बनवीर के साथ हुई लड़ाई में अपने प्राण त्यागे।
चौथी पीढ़ी के रूप में झाला आसा के पुत्र झाला सुरताण ने महाराणा उदयसिंह के समय में ही 1568 ईस्वी में मुगल सम्राट अकबर द्वारा चित्तौड़गढ़ पर किये गए आक्रमण के समय लड़ते हुए अपने प्राण त्यागे।
पाँचवीं पीढ़ी के रूप में झाला सुरताण के पुत्र झाला मान थे, जिन्होंने 1576 ईस्वी में हल्दीघाटी युद्ध में लड़ते हुए अपने प्राण त्यागे।
छठी पीढ़ी के रूप में झाला मान के पुत्र झाला देदा ने महाराणा अमरसिंह के समय मुगल सेना के साथ राणपुर (रणकपुर) के युद्ध में अपने प्राण त्यागे।
सातवीं पीढ़ी के रूप में झाला देदा के पुत्र राजराणा हरिदास झाला ने जहाँगीर की मुगल सेना से हुरडा गाँव के युद्ध में लड़ते हुए अपने प्राण त्यागे।
इस प्रकार हम देखते हैं कि जैसे-जैसे महाराणा सांगा के बाद दूसरे महाराणा राज करने आये, वैसे-वैसे झाला परिवार में भी एक से बढ़कर एक बलिदानी तैयार होते रहे।
अगर हम झाला मान की बात करें तो इनका पूरा नाम झाला मान सिंह या मान सिंह झाला था। इनको झाला मान, झाला मन्ना, झाला बीदा, मन्नाजी, बीदाजी जैसे दूसरे कई और नामों से भी जाना जाता है।
इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि मेवाड़ की आन, बान और शान बरकरार रखने में झाला मान जैसे बलिदानियों ने किस तरह अपने प्राणों का बलिदान दिया था।
हल्दीघाटी के युद्ध में झाला के बलिदान पर श्यामनारायण पांडेय ने एक कविता लिख कर इन्हें श्रद्धांजलि दी है। हम सभी को, जब भी हल्दीघाटी जाने का मौका मिले, तब रक्त तलाई में मौजूद उस छतरी पर जाकर नमन जरूर करना चाहिए जहाँ पर इन्होंने मुगलों से लड़ते लड़ते अपनी जान कुर्बान कर दी।
हल्दीघाटी के युद्ध में झाला के बलिदान पर श्यामनारायण पांडेय की लिखी कविता इस प्रकार है।
दानव समाज में अरुण पड़ा
जल जन्तु बीच हो वरुण पड़ा
इस तरह भभकता था राणा
मानो सर्पो में गरुड़ पड़ा
हय रुण्ड कतर, गज मुण्ड पाछ
अरि व्यूह गले पर फिरती थी
तलवार वीर की तड़प तड़प
क्षण क्षण बिजली सी गिरती थी
राणा कर ने सर काट काट
दे दिए कपाल कपाली को
शोणित की मदिरा पिला पिला
कर दिया तुष्ट रण काली को
पर दिन भर लड़ने से तन में
चल रहा पसीना था तर तर
अविरल शोणित की धारा थी
राणा क्षत से बहती झर झर
घोड़ा भी उसका शिथिल बना
था उसको चैन ना घावों से
वह अधिक अधिक लड़ता यद्यपि
दुर्लभ था चलना पाँवों से
तब तक झाला ने देख लिया
राणा प्रताप है संकट में
बोला न बाल बांका होगा
जब तक हैं प्राण बचे घट में
अपनी तलवार दुधारी ले
भूखे नाहर सा टूट पड़ा
कल कल मच गया अचानक दल
अश्विन के घन सा फूट पड़ा
राणा की जय, राणा की जय
वह आगे बढ़ता चला गया
राणा प्रताप की जय करता
राणा तक चढ़ता चला गया
रख लिया छत्र अपने सर पर
राणा प्रताप मस्तक से ले
ले सवर्ण पताका जूझ पड़ा
रण भीम कला अंतक से ले
झाला को राणा जान मुगल
फिर टूट पड़े थे झाला पर
मिट गया वीर जैसे मिटता
परवाना दीपक ज्वाला पर
झाला ने राणा रक्षा की
रख दिया देश के पानी को
छोड़ा राणा के साथ साथ
अपनी भी अमर कहानी को
अरि विजय गर्व से फूल उठे
इस तरह हो गया समर अंत
पर किसकी विजय रही बतला
ऐ सत्य सत्य अंबर अनंत ?
झाला मान सिंह का वीडियो - Video of Jhala Man Singh
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