चाँदी के भंडार पर चमत्कारी जावर माता मंदिर - Jawar Mata Mandir Zawar Mines, इसमें उदयपुर के पास जावर कस्बे में जावर माता के प्राचीन मंदिर की जानकारी है।
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आज हम आपको एक हजार साल से भी पुराने महिषासुरमर्दिनी के ऐसे मंदिर की यात्रा करवाने वाले हैं जिसमें महिषासुरमर्दिनी के रौद्र रूप की जगह शांत रूप के दर्शन होते हैं।
पहाड़ों के बीच यह मंदिर एक ऐसी नगरी में बना हुआ है जिसके नीचे चाँदी और जस्ते का भंडार है। पिछले ढाई हजार सालों से यहाँ पर जमीन के नीचे से लगातार चाँदी निकाली जा रही है।
इस मंदिर पर तुर्कों और मुगलों की तरफ से कुल तीन आक्रमण हुए जिनमें दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी का आक्रमण सबसे मुख्य है।
तो आज हम अरावली की घनी वादियों के बीच टीडी नदी के किनारे पर स्थित इस प्राचीन मंदिर की यात्रा करके इसके इतिहास को जानते हैं, आइए शुरू करते हैं।
जावर माता मंदिर की यात्रा और विशेषता - Journey and specialty of Jawar Mata Temple
जैसा कि हमने आपको बताया कि इस एरिया में चाँदी के भंडार होने की वजह से यहाँ हजारों सालों से जमीन में से चाँदी निकाली जा रही है।
इस निकाली हुई चाँदी में से जेवर बनाकर माता को चढ़ाए जाते थे जिस वजह से इस मंदिर का नाम जावर माता के नाम से जाना जाने लगा।
एक हजार साल से भी पुराना यह मंदिर मेवाड़ की सबसे प्राचीन शक्तिपीठ है। कहते हैं कि सच्ची श्रद्धा से मांगी गई मन्नत को माताजी जरूर पूरा करती है।
यह मंदिर पहाड़ियों के बीच प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर एक खूबसूरत जगह पर टीडी नदी के किनारे एक अर्धगोलाकार ऐनिकट के पास बना हुआ है। बारिश के मौसम में इस ऐनिकट से बहता पानी बड़ा सुंदर दिखता है।
मंदिर के सामने एक बड़ा चौक है जिसमें कुछ छतरियाँ बनी हुई है। इन छतरियों में और इनके पास नीचे जमीन पर कुछ सती स्तम्भ और खंडित प्रतिमाएँ रखी हुई हैं।
इन खंडित प्रतिमाओं से पता चलता है कि ये प्रतिमाएँ इस मंदिर पर हुए आक्रमण में खंडित हुई होंगी और इन आक्रमणकारियों से लड़ते हुए अपने प्राण गवाने वाले वीरों की याद में ये छतरियाँ बनी हैं।
एक सती स्तंभ पर घुड़सवार योद्धा और उसके साथ सती होने वाली महिला और दूसरे पर दो हाथ जोड़े महिलाओं की आकृति उकेरी हुई है। एक सती स्तम्भ पर लेख भी लिखा हुआ है।
पद्मासन मुद्रा की एक खंडित प्रतिमा का केवल कमर से नीचे का भाग ही मौजूद है। इस प्रतिमा के सबसे नीचे के हिस्से पर एक लेख लिखा हुआ है।
चारों तरफ खुले प्रांगण के बीच में माता का मंदिर बना हुआ है। मंदिर परिसर में एक तरफ रात्रि विश्राम के लिए धर्मशाला बनी हुई है। मंदिर के बाहर सामने माताजी का वाहन स्थल है जिसमें बाघों की मूर्तियाँ स्थापित हैं।
मंदिर और वाहन स्थल के बीच में चारों तरफ से ढका हुआ एक चबूतरा है जो शायद पशुबलि के लिए बनाया गया था। बताया जाता है कि अब पशुबलि की जगह भक्तजन माता के मंदिर में मुर्गे भेंट करते हैं इसलिए आपको मंदिर में इधर-उधर मुर्गे घूमते दिखाई दे जाते हैं।
मंदिर के चौक में एक गोलाकार चबूतरा बना है जिस पर चरण पादुकाएँ स्थापित हैं। चरण पादुका स्तम्भ पर भी एक लेख लिखा हुआ है। इसके पास में एक सती स्तम्भ लगा हुआ है जिससे यह पता चलता है कि यह किसी योद्धा की समाधि है।
पास में ही शीतला माता का मंदिर है जिसके अंदर माता का छोटा मंदिर बना है। इस छोटे मंदिर के ऊपर का निर्माण कुछ वर्षों पहले ही हुआ है।
माता के गर्भगृह के बाहरी भाग में चारों तरफ सजावटी मूर्तियाँ लगी हुई हैं। पुराने समय में ये मूर्तियाँ किसी विशेष उद्देश्य या किसी पौराणिक कथा को प्रदर्शित करने के लिए लगाई जाती थी।
मंदिर में गर्भगृह, अंतराल और उसके आगे दो मंजिल का सभामंडप बना हुआ है। पूरा सभामंडप खंभों पर टिका हुआ है जिसके नीचे के तल पर 64 स्तम्भ और ऊपर के तल पर 32 स्तम्भ हैं।
मंदिर का गर्भगृह चौकोर है जिसके चारों तरफ एक और दीवार बनाई गई थी ताकि इस दीवार के बाहर यानी मंदिर के बाहरी भाग में कलात्मक मूर्तियाँ स्थापित की जा सके।
गर्भगृह के अंदर महिषासुरमर्दिनी की भव्य मूर्ति स्थापित है जिसकी सबसे विशेष बात यह है कि ये मूर्ति अपने रौद्र रूप में ना होकर सौम्य रूप में है।
गर्भगृह के बाहर की द्वार शाखा यानी चौखट पर मूर्तियों की भरमार है। ये मूर्तियाँ देवी देवताओं और अप्सराओं से संबंधित लगती हैं। इनसे उस समय के धार्मिक जीवन की जानकारी मिलती है।
गर्भगृह के आगे अंतराल में लगे हुए दो स्तंभों पर प्राचीन लेख लिखे हुए हैं। मंदिर को आधुनिक बनाने के लिए गर्भगृह की चौखट और इन स्तंभों पर सोने जैसा रंग कर दिया गया है।
मंदिर में अंदर और बाहर सभी जगह रंग रोगन कर दिए जाने पर अब इसकी प्राचीनता काफी कम हो गई है। बहुत सी कलात्मक मूर्तियाँ और कलाकृतियाँ इस रंग के नीचे छुप गई है।
बताया जाता है कि मंदिर में कुछ और शिलालेख थे लेकिन लापरवाही और अज्ञानता की वजह से कुछ नष्ट हो गए और कुछ मंदिर के जीर्णोद्धार के समय निर्माण में काम मे ले लिए गए।
जावर माता मंदिर का इतिहास - History of Jawar Mata Temple
अगर हम जावर माता मंदिर के इतिहास के बारे में बात करें तो इस मंदिर को सातवीं शताब्दी के लगभग बना हुआ माना जाता है।
वैसे इस मंदिर के इतिहास के लिए पुजारियों, औदिच्य ब्राह्मणों की पोथियाँ ही मुख्य स्त्रोत रही हैं लेकिन इसके बारे में 646 ईस्वी में उदयपुर के सामोली अभिलेख से प्रामाणिक जानकारी मिलती है।
सामोली अभिलेख के अनुसार सिरोही के वटनगर (आज बसंतगढ़) के महाजन मेवाड़ मे आकर बस गए। इन लोगों ने ही इस क्षेत्र में चाँदी के खनन की शुरुआत की।
महाजनों की आज्ञा लेकर इनके महत्तर यानि नेता जेतक ने जावर ने अरण्यवासिनी का भव्य मंदिर बनवाया जिसमें 18 प्रकार के गायक मौजूद हुआ करते थे। आज इस मंदिर को जावर माता के मंदिर के नाम से जाना जाता है।
अभिलेख ये भी बताता है कि मंदिर के निर्माण के बाद जेतक ने देवबुक नाम की जगह पर अग्नि में प्रवेश करके अपनी मृत्यु का वरण किया था।
कुल मिलाकर ये अभिलेख मंदिर के बारे में इतनी जानकारी तो देता ही है कि इसका निर्माण 646 ईस्वी से पहले हुआ है।
महाराणा लाखा के समय के एक ताम्रपत्र में इस बात का उल्लेख बताया जाता है कि इन्होंने जावर माता मंदिर के लिए पुजारी परिवार को भूमि दान में दी थी।
मूल रूप से इस मंदिर को भगवान विष्णु का माना जाता है क्योंकि आज भी मंदिर के गर्भगृह की चौखट के बाहर दोनों तरफ भगवान विष्णु के प्रतिहार चंड-प्रचंड मौजूद हैं।
दूसरा गर्भगृह की बाहरी दीवार के तीनों गवाक्षों में विष्णु की मूर्ति मौजूद है। इन चीजों से पता चलता है कि मूल रूप से यह विष्णु मंदिर था।
जैसा कि हमने आपको पहले भी बताया है कि इस मंदिर पर तुर्कों और मुगलों की तरफ से कुछ आक्रमण हुए जिनमें दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी का आक्रमण सबसे ज्यादा मुख्य था।
ऐसा पता चलता है कि अलाउद्दीन खिलजी ने इस मंदिर में तोड़फोड़ करके भगवान विष्णु की मूर्ति को नष्ट कर दिया था। बाद में संभवतः महाराणा हम्मीर के समय माताजी की वर्तमान मूर्ति को स्थापित किया गया।
मंदिर पर अलाउद्दीन खिलजी के अलावा महाराणा रायमल के समय मालवा के सुल्तान और महाराणा प्रताप के समय अकबर के मुस्लिम सेनापति द्वारा आक्रमण हुए।
आज भी मंदिर परिसर के अंदर और बाहर कई छतरियों और सती स्तंभों के रूप में इन आक्रमणों के समय मंदिर को बचाने के लिए हुए युद्ध में अपने प्राण गवाने वाले योद्धाओं की निशानियाँ हैं।
इन आक्रमणों से मंदिर के नष्ट होने पर उसका कई बार जीर्णोद्धार भी हुआ। मंदिर का जीर्णोद्धार करवाने वालों में महाराणा हम्मीर, महाराणा लाखा और महाराणा प्रताप के समय भामाशाह शामिल थे।
नेजा लूटने की परंपरा - Tradition of Neja Lootna
जावर माता मंदिर प्रांगण में होली के बाद नवमी के दिन आदिवासी समाज का बड़ा मेला भरता है जिसमें सदियों से नेजा लूटने की परंपरा चली आ रही है।
इस मेले में आसपास के छह गांवों के लोग भाग लेते हैं जिनमें तीन गाँव के लोग नेजा बाँधते हैं और तीन गाँव के लोग इसे उतारते हैं।
जिन लोगों की मन्नत पूरी होती है वे एक लाल कपड़े में गुड़, नारियल और एक प्रकार का कोई भी अनाज जैसे गेंहू सहित कुछ पैसे रखकर मंदिर के सामने स्थित सेमल के पेड़ पर 25-30 फीट की ऊँचाई पर बाँध देते है। इसे ही नेजा कहा जाता है।
नेजों की संख्या 100 से भी ज्यादा हो जाती है। महिलाओं द्वारा बड़े बाँस के डंडों से गैर खेले जाने के बाद पेड़ से नेजा उतारने के लिए पुरुषों में होड़ लग जाती है।
जावर कस्बा और माइंस - Jawar Town and Mines
जावर कस्बा चाँदी और जस्ते के खदानों की वजह से सारी दुनिया में प्रसिद्ध है लेकिन ऐसा नहीं है कि ये कस्बा आज ही दुनिया में प्रसिद्ध हुआ है।
यहाँ की जमीन के नीचे चाँदी जैसी कीमती धातु होने की वजह से हजारों साल पहले ही इसकी पहचान एक समृद्ध औद्योगिक नगरी के रूप में हो गई थी।
ऐसा माना जाता है कि यहाँ के लोग ढाई हजार साल पहले ही धातु विज्ञान में विशेषज्ञता प्रात कर चुके थे और सातवीं शताब्दी तक यह जगह भारत की एक प्रमुख आर्थिक नगरी बन चुकी थी।
पंद्रहवीं शताब्दी तक यहाँ पर लगभग 200 हिन्दू और जैन मंदिर बन चुके थे जिनके खंडहर आज भी जगह-जगह पर देखने को मिल जाते हैं। इस तरह जावर कस्बा आर्थिक और धार्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण रहा है।
आज भी जावर में जावरमाला, बोरिया, मोचिया, बलारिया जैसी कई माइंस है जिन्हें सम्मिलित रूप से जावर माइंस कहा जाता है। यहाँ पर काफी मात्रा में चाँदी और जिंक निकाला जाता है।
जावर माता मंदिर के पास घूमने की जगह - Places to visit near Jawar Mata Temple
अगर जावर माता मंदिर के पास घूमने की जगह के बारे में बात करें तो आप इस जगह के आसपास टीडी बाँध, वैद्यनाथ महादेव मंदिर, जावर फोर्ट, रामनाथ मंदिर, हिरण्यकश्यप के महल के साथ जगह-जगह पर कई जैन मंदिरों के अवशेष देख सकते हैं।
जावर माता मंदिर कैसे जाएँ? - How to reach Jawar Mata Temple?
अब हम बात करते हैं कि जावर माता मंदिर कैसे जाएँ?
जावर माता का मंदिर उदयपुर-अहमदाबाद हाइवे पर उदयपुर रेलवे स्टेशन से लगभग 35 किलोमीटर दूर अरावली की घनी पहाड़ियों के बीच में बना हुआ है। यहाँ पर आप कार या बाइक से जा सकते हैं।
मंदिर तक बहुत बढ़िया सड़क बनी हुई है। जावर माता मंदिर तक जाने के लिए आपको उदयपुर रेलवे स्टेशन से उदयपुर-अहमदाबाद हाइवे पर लगभग 30 किलोमीटर दूर लेफ्ट साइड में टीडी बस स्टैन्ड तक जाना होगा।
इसके बाद टीडी बस स्टैन्ड से जावर रोड़ पर लगभग ढाई किलोमीटर आगे जाने पर लेफ्ट टर्न लेना है। इस लेफ्ट टर्न से टीडी नदी को पार करके नदी के बगल से चलते हुए लगभग 400 मीटर दूर मंदिर तक जाना है।
अगर आप मंदिर के अलावा आसपास के जंगली एरिया में घूमना चाहते हैं तो थोड़ी सावधानी बरत कर जाएँ क्योंकि इस एरिया में पैन्थर भी विचरण करते हैं।
आखिर में बस यही कहना है कि अगर आप पहाड़ों की सुंदरता के साथ ऐतिहासिक महत्व की किसी प्राचीन धार्मिक जगह पर घूमने के शौकीन हैं तो आपको यहाँ जरूर जाना चाहिए।
आज के लिए बस इतना ही, उम्मीद है हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको जरूर पसंद आई होगी। कमेन्ट करके अपनी राय जरूर बताएँ।
इस तरह की नई-नई जानकारियों के लिए हमारे साथ बने रहें। जल्दी ही फिर से मिलते हैं एक नई जानकारी के साथ, तब तक के लिए धन्यवाद, नमस्कार।
जावर माता मंदिर की मैप लोकेशन - Map Location of Zawar Mata Mandir
जावर माता मंदिर का वीडियो - Video of Zawar Mata Mandir
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