इस महल में मेवाड़ की गद्दी पर बैठे महाराणा प्रताप - Gogunda Mahal, इसमें उदयपुर के गोगुन्दा महल के ऐतिहासिक महत्व के बारे में जानकारी दी गई है।
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आज हम आपको उस जगह के बारे में बताने जा रहे हैं जहाँ पर अकबर के आक्रमण समय चित्तौड़ के दुर्ग को छोड़ने के बाद महाराणा उदय सिंह अपने परिवार के साथ रहे थे।
यही वो जगह है जहाँ पर महाराणा उदय सिंह की मृत्यु हुई थी और इसी जगह पर कुँवर प्रताप मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठ कर महाराणा प्रताप कहलाये थे।
इसी जगह ही 5 फरवरी 1615 को महाराणा अमर सिंह और मुग़ल बादशाह जहांगीर के बीच मुगल मेवाड़ संधि हुई।
यह जगह है गोगुन्दा का महल जिस पर कभी ईडर के राठौड़ों का, कभी मेवाड़ के सिसोदियों का और कभी झाला राजराणाओं का कब्जा रहा।
आज हम गोगुन्दा के इस महल के बारे में जानते हैं जिसे अब गोगुन्दा पैलेस के नाम से जाना जाता है। तो आइये शुरू करते हैं।
गोगुंदा महल का इतिहास - History of Gogunda Mahal
गोगुंदा महल को ईडरिया महल भी कहा जाता है क्योंकि इस महल के निर्माण की शुरुआत तेरहवीं शताब्दी में वर्तमान गुजरात में स्थित ईडर के राठौड़ वंश ने करवाई थी।
ईडर के शासकों ने व्यापारिक गतिविधियों पर नियंत्रण के लिए इस महल को एक थाने के रूप में स्थापित कर रखा था। उस समय ईडर के राजा इस महल को उत्तर दिशा में अपनी अंतिम चौकी के रूप में काम में लेते थे।
आपको पता होना चाहिए कि महाराणा उदय सिंह से पहले गोगुन्दा का यह क्षेत्र मेवाड़ राज्य में खालसा क्षेत्र था। खालसा क्षेत्र सीमावर्ती प्रदेशों की परिधि के बीच का केन्द्रीय क्षेत्र होता था जिस पर शासक का सीधा नियंत्रण होता था।
14 वीं शताब्दी में चित्तौड़ के महाराणा हम्मीर सिंह सिसोदिया ने ईडर तक का राज्य जीत लिया था। इनके बाद इनके पुत्र महाराणा खेता ने भी ईडर पर अपना कब्जा बरकरार रखा।
महाराणा खेता ने गोगुन्दा के व्यापारिक महत्व को देखते हुए गोगुन्दा पर भी कब्ज़ा कर लिया। इस प्रकार गोगुंदा से लेकर ईडर तक राज्य महाराणा खेता के अधिकार में आ गया था।
महाराणा खेता ने गोगुंदा में स्थित इस ईडरिया महल का जीर्णोद्धार करवाकर शासक के निवास के लिए गुंबद भवन का निर्माण करवाया। गुम्बद भवन एक मर्दाना महल था जो वर्तमान महल का सबसे पुराना हिस्सा है।
गुंबद भवन यानी राजा के महल में पाँच आंतरिक दरबार मौजूद थे जिनमें समय के साथ बदलाव होते गए। यह महल मध्यकालीन राजपूत शैली का एक बेहतरीन नमूना है।
महाराणा खेता ने महल के पास एक तालाब का निर्माण करवाया जिसे इनके नाम पर खेतला तालाब कहा जाता है। इन्होंने इस तालाब के किनारे एक मंदिर का निर्माण भी करवाया था।
इन्होंने गोगुन्दा में महादेव का मंदिर और उसके पास एक बावड़ी का निर्माण भी करवाया था। बाद में इसी बावड़ी पर महाराणा प्रताप का राजतिलक हुआ था।
महाराणा खेता की मृत्यु के बाद खेतला तालाब के पास इनका दाह संस्कार किया गया और एक छतरी का निर्माण करवाया गया। यह छतरी आज भी तालाब के किनारे पर मौजूद है।
महाराणा खेता के बाद इनके पौत्र यानी महाराणा लाखा के पुत्र महाराणा मोकल ने गोगुन्दा महल का जीर्णोद्धार करवाया और साथ में खेतला तालाब के पास राणेराव तालाब का निर्माण करवाया।
महाराणा मोकल के बाद इनके पुत्र महाराणा कुम्भा ने भी गोगुन्दा महल का जीर्णोद्धार करवाया। कुम्भा ने गोगुंदा के विष्णु मंदिर और वैष्णव भक्ति का सचित्र वर्णन करने वाले ग्रन्थ गीत गोविंद आख्यायिका का निर्माण करवाया।
मेवाड़ में बड़े नाटकीय घटनाक्रम के बाद महाराणा सांगा के पुत्र महाराणा उदय सिंह ने 1540 ईस्वी में बनवीर को हराकर चित्तोड़ की गद्दी संभाली।
जब 1567-68 में चित्तौड़ पर अकबर का आक्रमण हुआ तब महाराणा उदय सिंह ने चित्तौड़ को त्यागकर गोगुंदा को अपनी राजधानी बनाया।
महाराणा उदय सिंह गोगुंदा में इस ईडरिया महल में रहे और यहाँ से ही उन्होंने उदयपुर के निर्माण कार्य को भी संभाला।
महाराणा उदय सिंह ने इस महल के उत्तर पश्चिमी भाग का निर्माण करवाया जिसे बाद में यहाँ के झाला राजराणाओं ने अपना निवास स्थान बनाया।
जब 1572 ईस्वी में महाराणा उदय सिंह की मृत्यु इसी महल में हुई तब उनका दाह संस्कार राणेराव तालाब के किनारे हुआ और एक छतरी बनाई गई। हाल ही में इस छतरी का जीर्णोद्धार हुआ है।
महाराणा उदय सिंह के बाद महाराणा प्रताप इसी महल में राज गद्दी पर बैठे और लगभग चार वर्षों तक इस महल में रह पाए।
1576 ईस्वी में हल्दीघाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप गोगुन्दा को छोड़कर कमलनाथ महादेव के पहाड़ों में चले गए। इन्होंने महल की रक्षा के लिए कुछ सैनिकों को गोगुंदा में छोड़ा था।
ये सैनिक हल्दीघाटी के युद्ध के बाद मान सिंह के साथ महाराणा प्रताप की तलाश में आई मुगल सेना के साथ लड़ते-लड़ते मारे गए। इन सैनिकों में हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों के सैनिक थे।
ये सैनिक महल में जिस जगह मारे गए थे उस जगह पर इन्हें लोक देवता के रूप में पूजा जाता था। आज भी महल में वो जगह मौजूद हैं।
दरअसल युद्ध और आक्रमण के समय जो सैनिक जिस जगह शहीद होते थे उन्हें उस जगह समाधि बनाकर उस क्षेत्र के रक्षक के रूप में लोक देवताओं के रूप में स्थापित कर दिया जाता था।
स्थानीय भाषा में मुस्लिम सैनिकों की समाधियों को पीर बावजी और राजपूत सैनिकों की समाधियों को राड़ाजी या सगरजी बावजी कहा जाता था। आज भी आपको मेवाड़ में जगह-जगह ये स्थान देखने को मिल जाते हैं।
गोगुन्दा महल के अंदर पीर बावजी की तीन मजार और एक राड़ा जी का स्थान है जो अब झरोखों के रूप में केवल सांकेतिक रूप से मौजूद हैं।
महल के अंदर पहली मजार गुंबद भवन में कमरे के अंदर, दूसरी मजार गुंबद भवन की सीढ़ियाँ उतरने के बाद बरामदे में दीवार के अंदर, तीसरी मजार कोठार और शस्त्रागार के पास बरामदे की दीवार में स्थित है।
इन मजारों के साथ महल में प्रवेश करते ही दरवाजे के लेफ्ट साइड की दीवार में झरोखे के रूप में राड़ा जी का स्थान है। इस स्थान के पास एक शिव मंदिर भी है।
गोगुन्दा के महल में ही अमरपसि नामक जगह पर 5 फरवरी 1615 को मुगल मेवाड़ संधि हुई जिसमें मुगलों की तरफ से शहजादा खुर्रम महल में मौजूद था।
वर्तमान में गोगुन्दा महल - Presently Gogunda Mahal
अब गोगुन्दा महल एक हेरिटेज होटल का रूप ले चुका है जिसके कारण इसमें बहुत से बदलाव हुए हैं। एक आम पर्यटक के लिए इसे देख पाना संभव नहीं है।
गोगुन्दा के झाला राजराणाओं का इतिहास - History of Jhala Rajranas of Gogunda
मेवाड़ में झालाओं का इतिहास झाला अज्जा और झाला सज्जा नाम के भाइयों से शुरू होता है। ये दोनों गुजरात के हलवद राजपरिवार से ताल्लुक रखते थे। इनकी बहन का विवाह मेवाड़ के महाराणा रायमल से हुआ था।
पारिवारिक विवाद की वजह से अज्जा और सज्जा, हलवद छोड़कर 1500 ईस्वी में मारवाड़ गए जहाँ राव सूजा ने इनको जागीर दी। ये जागीर इनकी वजह से झालामंड कहलाई।
राव सूजा से कुछ विवाद होने की वजह से ये दोनों 1506 ईस्वी में अपने बहनोई, मेवाड़ के महाराणा रायमल के पास आ गए जिसने झाला अज्जा को अजमेर के पास और झाला सज्जा को देलवाड़ा की जागीर दी।
बाबर के खिलाफ महाराणा सांगा की तरफ से लड़कर खानवा के युद्ध में अपने प्राण त्यागने वाले झाला अज्जा और इनके भाई झाला सज्जा को राजराणा की उपाधि दी गई।
इसके साथ झाला अज्जा व उनके वंशजों को अजमेर, झाड़ोल, बिछीवाड़ा, कानोड़ और सादड़ी की जागीर मिली।
महाराणा अमर सिंह के समय 1614 ईस्वी में देलवाड़ा के शत्रुशाल झाला की मृत्यु गोगुन्दा के मुगल थाने पर हमला करते समय रावलिया तालाब के किनारे पर हुई जहाँ उनकी छतरी बनी हुई है।
शत्रुशाल की मृत्यु के बाद उसकी वीरता से प्रसन्न होकर महाराणा अमर सिंह ने उसके वंशजों को गोगुन्दा से लगभग 5 किलोमीटर दूर रावलिया (रावल्या) की जागीर दे दी।
शत्रुशाल का दूसरा पुत्र कान्ह सिंह रावलिया की गद्दी पर बैठा। इस प्रकार मेवाड़ में झालाओं के तीसरे ठिकाने का निर्माण हुआ जो देलवाड़ा के झाला राजवंश से निकला।
1628 ईस्वी में कान्ह सिंह ने गोगुंदा में ईडरिया थाने पर हमला करके उस पर कब्जा कर लिया। गोगुंदा पर कान्ह सिंह का कब्जा हो जाने पर महाराणा जगत सिंह ने गोगुंदा का पट्टा कान्ह सिंह को दिया।
गोगुंदा ठिकाने की स्थापना के बाद राजराणा कान्ह सिंह ने अपनी राजधानी रावलिया से गोगुंदा शिफ्ट की और गोगुंदा के महल में अपने परिवार सहित निवास किया।
गोगुन्दा महल के पास घूमने की जगह - Places to visit near Gogunda Mahal
अगर हम गोगुन्दा महल के पास घूमने की जगह के बारे में बात करें तो महल के पास ही महाराणा प्रताप का राजतिलक स्थल, महाराणा उदय सिंह की छतरी, राणेराव तालाब, धोलिया जी आदि देख सकते हैं।
गोगुन्दा महल कैसे जाएँ? - How to reach Gogunda Mahal?
अब बात करते हैं कि अगर आपको गोगुन्दा महल आना हो तो आप कैसे आएँ।
गोगुन्दा महल, गोगुन्दा कस्बे के अंदर बना हुआ है। उदयपुर रेलवे स्टेशन से गोगुन्दा महल की दूरी लगभग 42 किलोमीटर है।
उदयपुर से गोगुन्दा तक नेशनल हाईवे है। आप कार या बाइक से आ सकते हैं। यहाँ तक आने के लिए ट्रेन की सुविधा नहीं है।
आज के लिए बस इतना ही, उम्मीद है हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको जरूर पसंद आई होगी। कमेन्ट करके अपनी राय जरूर बताएँ।
इस प्रकार की नई-नई जानकारियों के लिए हमारे साथ बने रहें। जल्दी ही फिर से मिलते हैं एक नई जानकारी के साथ, तब तक के लिए धन्यवाद, नमस्कार।
गोगुन्दा महल की मैप लोकेशन - Map Location of Gogunda Mahal
गोगुन्दा महल का वीडियो - Video of Gogunda Mahal
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