पांडवों द्वारा स्थापित भगवान कृष्ण का सबसे पहला मंदिर - Charbhuja Mandir Garhbor, इसमें पांडवों द्वारा स्थापित चारभुजा नाथ मंदिर की जानकारी दी गई है।
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आज हम आपको पांडवों द्वारा स्थापित विश्व के सबसे पहले कृष्ण मंदिर में लेकर जाने वाले हैं जिसमें पूजे जाने वाली प्रतिमा खुद भगवान कृष्ण ने देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा से बनवाई थी।
यह मंदिर मूल रूप से कृष्ण मंदिर है लेकिन यहाँ पर भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की सेवा पूजा होती है।
यह एक ऐसा मंदिर है जिसमें मुगल बादशाह औरंगजेब ने ठाकुरजी के चमत्कार से प्रभावित होकर सोने की मोहरें भेंट करने के साथ ख्वाजा आरती शुरू करवाई थी।
तो आज हम भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप वाले इस कृष्ण मंदिर के बारे में जानकारी लेते हैं। आइए शुरू करते हैं।
चारभुजा मंदिर की यात्रा और विशेषता - Tour and Speciality of Charbhuja Mandir Garhbor
इस मंदिर का गर्भगृह पहली मंजिल पर बना हुआ है। ऊपर जाने के लिए सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती है। इन सीढ़ियों के दोनों तरफ बड़े-बड़े हाथी बने हुए हैं।
मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है। गर्भगृह के अंदर सोने, चांदी और काँच की कारीगरी की हुई है। बताया जाता है कि महाराणा सज्जन सिंह ने मंदिर को सोने का दान दिया था।
गर्भगृह के अंदर 85 सेन्टमीटर ऊँची चारभुजा नाथ की मूर्ति विराजमान हैं। यहाँ भगवान अपने चतुर्भुज रूप में हैं जिन्होंने अपनी चारों भुजाओं में शंख, चक्र, गदा और तुलसी माला धारण कर रखे हैं।
ऐसा बताया जाता है कि मंदिर में भगवान विष्णु का जो चतुर्भुज रूप है, वह वही रूप है जिसे कृष्ण ने अपने जन्म के समय कंस के बंदीगृह में अपने माता पिता यानी देवकी और वासुदेव को दिखाया था।
यहाँ पर प्राचीन काल से ही अखंड ज्योत जल रही है। गर्भगृह के बाहर गरुड़ जी विराजमान है। इनके पास ही चारभुजानाथ के परम भक्त की प्रतिमा भी लगी हुई है।
ये भक्त गुर्जर समाज से थे। मंदिर में सेवा पूजा का कार्य सैंकड़ों वर्षों से इनके वंशज ही करते आ रहे हैं। अब पुजारी परिवार की संख्या बढ़ते-बढ़ते 1000 के लगभग हो गई है।
मंदिर के बरामदे में भगवान कृष्ण की लीलाओं के चित्र लगे हुए हैं। इसके साथ मंदिर परिसर में एक दो छोटे मंदिर और बने हुए हैं जिनमें प्राचीन मूर्तियाँ लगी हुई हैं।
मंदिर के सामने दो मंजिल की छतरी जैसी जगह में एक सती स्तम्भ के साथ दो योद्धाओं के स्तम्भ लगे हुए हैं। सती स्तम्भ पर कुछ लिखा हुआ है। शायद ये राजपरिवार से संबंधित किसी योद्धा की छतरी है।
मंदिर में पाँच बार आरती होती है लेकिन विशेष बात यह है कि दोपहर के बाद में होने वाली आरती को ख्वाजा आरती कहा जाता है। इस आरती को ख्वाजा आरती कहने के पीछे एक कारण है।
ऐसा बताया जाता है कि जब औरंगजेब इस मंदिर को तोड़ने के लिए आया था, तब चारभुजानाथ के चमत्कार की वजह से वह मंदिर का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाया।
भगवान के चमत्कार से प्रभावित होकर औरंगजेब ने मंदिर में सोने की मोहरें भेंट की और दोपहर के बाद होने वाली एक आरती का सारा खर्चा उठाया।
इसी वजह से आज भी दोपहर बाद होने वाली इस आरती को ख्वाजा आरती कहा जाता है। ऐसा बताया जाता है कि अजमेर से ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने भी यहाँ पर आकर मोहरें भेंट की थी। (Reference for Khwaja Aarti - https://www.youtube.com/watch?v=uQdMMLgW06w)
मंदिर वैष्णव परंपरा से संबंधित है। भारत में पाँच ऐसी वैष्णव पीठ हैं जिनमें भगवान कृष्ण अकेले विराजमान हैं यानी इनके साथ राधा या रुक्मणी नहीं है।
इन पीठों में गढ़बोर के चारभुजानाथ, नाथद्वारा के श्रीनाथजी, डाकोर के रणछोड़ दास, पुरी के जगन्नाथ और द्वारका के द्वारकाधीश हैं।
चारभुजानाथ मंदिर की पीठ इन पाँचों वैष्णव पीठों में प्रधान पीठ है। मंदिर की एक सबसे खास बात यह है कि यह मंदिर भगवान कृष्ण का है लेकिन यहाँ पूजा भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की होती है।
जैसा कि हमने आपको पहले भी बताया है कि भगवान कृष्ण ने अपने माता पिता को कंस के कारागार में अपने चतुर्भुज रूप के दर्शन करवाए थे।
इस मंदिर में भगवान कृष्ण के उसी चतुर्भुज रूप की पूजा होती है। भगवान के चार हाथ होने की वजह से इनका नाम चारभुजानाथ पड़ गया।
मंदिर में साल में दो बड़े मेले भरते हैं। एक बड़ा मेला भाद्रपद सुदी एकादशी को भरता है जिसे जलझूलनी एकादशी कहते हैं।
इस मेले में भगवान को शाही लवाजमें के साथ सोने के बेवाण में बिठाकर मंदिर से दो किलोमीटर दूर दूध तलाई में ले जाकर नौका विहार करवाया जाता है।
दूसरा मेला होली के बाद 15 दिनों तक भरता है जिसे फागोत्सव कहा जाता है। यह रंगों का त्योहार है।
चारभुजा मंदिर का इतिहास - History of Charbhuja Mandir Garhbor
अगर मंदिर के इतिहास के बारे में बात की जाए तो ऐसा बताया जाता है कि इस मंदिर की स्थापना पांडवों ने की थी।
ऐसी मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने जब उद्धव से गौलोक जाने की अपनी इच्छा जताई तब उद्धव ने पांडवों और सुदामा के लिए चिंता जताई और कहा कि आपके बिना उनका क्या हाल होगा।
ऐसे में भगवान कृष्ण ने विश्वकर्मा से खुद की दो मूर्तियाँ बनवाई और देवराज इन्द्र को इनमें से एक मूर्ति पांडवों को और दूसरी मूर्ति सुदामा को देने के लिए कहा।
साथ ही कहा कि पांडवों और सुदामा से कहना कि इन मूर्तियों के रूप में, मैं खुद मौजूद हूँ, इसलिए आप इन मूर्तियों के माध्यम से मेरी भक्ति कर सकते हो।
इन्द्र ने पांडवों और सुदामा को एक-एक मूर्ति दे दी। मूर्ति पाकर पांडव और सुदामा इन मूर्तियों की सेवा पूजा करने लगे।
अपने जीवन के अंतिम समय में हिमालय जाने से पहले पांडवों ने एक गुप्त स्थान पर इस मूर्ति को पानी में डुबोकर छोड़ दिया ताकि इसकी पवित्रता खंडित ना हो।
कालांतर में गढ़बोर के राजा गंगदेव को चारभुजानाथ ने सपने में दर्शन देकर कहा कि वो पानी में से मूर्ति निकलवाकर मंदिर बनवाए।
राजा गंगदेव ने गढ़बोर में चारभुजानाथ का मंदिर बनवाकर उसमें पानी से निकली हुई मूर्ति को स्थापित करवा दिया। इस प्रकार चारभुजानाथ के वर्तमान मंदिर का निर्माण राजा गंगदेव ने करवाया था।
ऐसा बताया जाता है कि गढ़बोर के चारभुजा मंदिर में पांडवों द्वारा पूजी जाने वाली वही मूर्ति है और सेवंत्री के रूपनारायण मंदिर में सुदामा द्वारा पूजी जाने वाली मूर्ति है।
चारभुजा शिलालेख के अनुसार सन् 1444 ईस्वी में ठाकुर महिपाल सिंह व उसके पुत्र लक्ष्मण ने चारभुजानाथ के इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
ऐसा बताया जाता है कि इस मूर्ति की रक्षा के लिए 125 युद्ध हुए और कई बार इस मूर्ति को बचाने के लिए जल में डुबोकर रखना पड़ा।
मंदिर के एक प्राचीन शिलालेख के अनुसार पहले इस क्षेत्र का नाम बद्री था। क्षेत्र का यह नाम बद्रीनाथ से मिलता है।
चारभुजा मंदिर के पास घूमने की जगह - Places to visit near Charbhuja Mandir Garhbor
अगर चारभुजा मंदिर के पास घूमने की जगह के बारे में बात करें तो आप सेवन्त्री का रूपनारायण मंदिर और लक्ष्मण झूला देख सकते हैं।
कुंभलगढ़ का किला भी यहाँ से 30 किलोमीटर की दूरी पर है इसलिए आप इसे भी देख सकते हैं।
चारभुजा मंदिर कैसे जाएँ? - How to go Charbhuja Mandir Garhbor?
अब हम बात करते हैं कि चारभुजा मंदिर कैसे जाएँ?
चारभुजा मंदिर राजसमंद जिले के गढ़बोर कस्बे के अंदर बना हुआ है। उदयपुर रेल्वे स्टेशन से यहाँ की दूरी लगभग 100 किलोमीटर और राजसमंद शहर से लगभग 40 किलोमीटर है।
आपको उदयपुर से यहाँ जाने के लिए राजसमंद से आगे गोमती चौराहे से लेफ्ट साइड में देसूरी रूट पर जाना होगा। धोदीयावास से आगे सेवन्त्री रूट पर गढ़बोर कस्बे में जाना होगा।
मंदिर के पार्किंग एरिया से आगे जाने पर एक प्राचीन बावड़ी आती है जिसे भीम कुंड कहते हैं। यहाँ से आगे जाने पर चंद्र पोल गेट के आगे चारभुजा नाथ का मंदिर आता है।
अगर आप खुद भगवान कृष्ण द्वारा बनवाई गई उनकी मूर्ति के दर्शन करना चाहते हैं तो आपको यहाँ पर जरूर जाना चाहिए।
आज के लिए बस इतना ही, उम्मीद है हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको जरूर पसंद आई होगी। कमेन्ट करके अपनी राय जरूर बताएँ।
इस प्रकार की नई-नई जानकारियों के लिए हमारे साथ बने रहें। जल्दी ही फिर से मिलते हैं एक नई जानकारी के साथ, तब तक के लिए धन्यवाद, नमस्कार।
चारभुजा मंदिर की मैप लोकेशन - Map Location of Charbhuja Mandir Garhbor
चारभुजा मंदिर का वीडियो - Video of Charbhuja Mandir Garhbor
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