खाटू श्याम चौरासी पाठ की महिमा - Khatu Shyam Chorasi Paath Ki Mahima, इसमें खाटू श्याम चौरासी पाठ करने के महत्व और तरीके की सम्पूर्ण जानकारी है।
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खाटू श्याम चौरासी की एक अलग ही महिमा है। सच्चे मन से खाटू श्याम चौरासी पाठ करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। जिस घर में रोज खाटू श्याम चौरासी का पाठ होता है उस घर पर बाबा श्याम का आशीर्वाद बना रहता है।
See also in English Khatu Shyam Chaurasi - Miracles of Shyam Chaurasi
आगे दी गई खाटू श्याम चौरासी संभवतः सबसे पुरानी श्याम चौरासी है। यह प्रामाणिक श्याम चौरासी प्रसिद्ध इतिहासकार पंडित झाबरमल्ल शर्मा ने अपनी किताब "खाटू श्यामजी का इतिहास" में भी संकलित की है।
खाटू श्याम चौरासी हिंदी लिरिक्स, Khatu Shyam Chaurasi Hindi Lyrics
दोहा
गुरू पंकज ध्यान धर, सुमिर सच्चिदानंद।
श्याम चौरासी भणत हूँ, रच चौपाई छंद।
श्री श्याम चौरासी के चौपाई छंद, Shri Shyam Chorasi Ke Chopai Chhand
महर करो जन के सुखरासी, साँवलशा: खाटू के बासी। (1)
प्रथम शीश चरणों में नाऊँ, किरपा दृष्टि रावरी चाहूँ। (2)
माफ सभी अपराध कराऊँ, आदि कथा सुछंद रच गाऊँ। (3)
भक्त सुजन सुनकर हरषासी, साँवलशा: खाटू के बासी। (4)
कुरु पांडव में विरोध छाया, समर महाभारत रचवाया। (5)
बली एक बर्बरीक आया, तीन सुबाण साथ में लाया। (6)
यह लखि हरि को आई हाँसी, साँवलशा: खाटू के बासी। (7)
मधुर वचन तब कृष्ण सुनाये, समर भूमि केहि कारन आये। (8)
तीन बाण धनु कंध सुहाये, अजब अनोखा रूप बनाये। (9)
बाण अपार वीर सब ल्यासी, साँवलशा: खाटू के बासी। (10)
बर्बरीक इतने दल माहीं, तीन बाण की गिणती नाहीं। (11)
योद्धा एक से एक निराले, वीर बहादुर अति मतवाले। (12)
समर सभी मिल कठिन मचासी, साँवलशा: खाटू के बासी। (13)
बर्बरीक मम कहना मानो, समर भूमि तुम खेल न जानो। (14)
द्रोण गुरू कृपा आदि जुझारा, जिनसे पारथ का मन हारा। (15)
तू क्या पेश इन्हीं से पासी, साँवलशा: खाटू के बासी। (16)
बर्बरीक हरि से यों कहता, समर देखना मैं हूँ चाहता। (17)
कौन बली रणशूर निहारुँ, वीर बहादुर कौन सुझारु। (18)
तीन लोक त्रैबाण से मारुँ, हसता रहूँ कभी नन हारु। (19)
सत्य कहूँ हरि झूठ न जानो, दोनों दल इक तरफ हों मानो। (20)
एक बाण दल दोऊ खपासी, साँवलशा: खाटू के बासी। (21)
बर्बरीक से हरि फरमावें, तेरी बात समझ नहीं आवे। (22)
प्राण बचाओ तुम घर जाओ, क्यों नादानपना दिखलाओ। (23)
तेरी जान मुफ्त में जासी, साँवलशा: खाटू के बासी। (24)
गर विश्वास न तुम्हें मुरारी, तो कर लीजे जाँच हमारी। (25)
यह सुन कृष्ण बहुत हरषाये, बर्बरीक से बचन सुनाये। (26)
मैं अब लेऊँ परीक्षा खासी, साँवलशा: खाटू के बासी। (27)
पात बिटप के समी निहारो, बेंध एक वाण से ही सब डारो। (28)
कह इतना इक पाई करारी, दबा लिया पद तले मुरारी। (29)
अजब रची माया अविनाशी, साँवलशा: खाटू के बासी । (30)
बर्बरीक धनुबाण चढ़ाया, जानि जाय न हरि की माया। (31)
बिटप निहार बली मुस्काया, अजित अमर अहिलवति जाया। (32)
बली सुमिर शिव बाण चलासी, साँवलशा: खाटू के बासी। (33)
बाण बली ने अजब चलाया, पत्ते बेंध बिटप के आया। (34)
गिरा कृष्ण के चरणों माहीं, विधा पात हरि चरण हटाई। (35)
इनसे कौन फते किमि पासी, साँवलशा: खाटू के बासी। (36)
कृष्ण कहे बली बताओ, किस दल की तुम जीत कराओ। (37)
बली हारे का दल बतलाया, यह सुन कृष्ण सनका खाया। (38)
विजय किस तरह पारथ पासी, साँवलशा: खाटू के बासी। (39)
छल करना तब कृष्ण विचारा, बली से बोले नंद कुमारा। (40)
ना जाने क्या ज्ञान तुम्हारा, कहना मानो बली हमारा। (41)
हो निज तरफ नाम पाजासी, साँवलशा: खाटू के बासी। (42)
कहे बर्बरीक कृष्ण हमारा, टूट न कसता प्रण है करारा। (43)
माँगे दान उसे मैं देता, हारा देख सहारा देता। (44)
सत्य कहूँ ना झूठ जरा सी, साँवलशा: खाटू के बासी। (45)
बेशक वीर बहादुर तुम हो, जचते दानी हमें न तुम हो। (46)
कहे बर्बरीक हरि बतलाओ, तुम चाहिये क्या फरमाओ। (47)
जो माँगे सो हमसे पासी, साँवलशा: खाटू के बासी। (48)
बली अगर तुम सच्चे दानी, तो मैं तुमसे कहूँ बखानी। (49)
समर भूमि बलि देने खातिर, शीश चाहिए एक बहादुर। (50)
शीश दान दे नाम कमासी, साँवलशा: खाटू के बासी। (51)
हम तुम तीनों अर्जुन माहीं, शीशदान दे कोऊ बलदाई। (52)
जिसको आप योग्य बतलाये, वही शीश बलिदान चढ़ाये। (53)
आवागमन मिटे चौरासी, साँवलशा: खाटू के बासी। (54)
अर्जुन नाम समर में पावे, तुम बिन सारथी कौन कहावे। (55)
मम शिर दान दिहों भगवाना, महाभारत देखन मन ललचाना। (56)
शीश शिखर गिरि पर धरवासी, साँवलशा: खाटू के बासी। (57)
शीश दान बर्बरीक दिया है, हरि ने गिरि पर धरा दिया है। (58)
समर अठारह रोज हुआ है, कुरु दल सारा नाश हुआ है। (59)
विजय पताका पाण्डव फैरासी, साँवलशा: खाटू के बासी। (60)
भीम, नकुल सहदेव और पारथ, करते निज तारीफ अकारथ। (61)
यों सोचें मन में यदुराया, इनके दिल अभियान है छाया। (62)
हरि भक्तों का दुःख मिटासी, साँवलशा: खाटू के बासी। (63)
पारथ,भीम अधिक बलधारी, से यों बोले गिरिवर धारी। (64)
किसने विजय समर में पाई, पूछो शिर बर्बरीक से भाई। (65)
सत्य बात शिर सभी बतासी, साँवलशा: खाटू के बासी। (66)
हरि सबको संग ले गिरिवर पर, शिर बैठा था मगन शिखर पर। (67)
जा पहुँचे झटपट नंदलाला, पुनि पूछा शिर से सब हाला। (68)
शिर दानी है सुख अविनाशी, साँवलशा: खाटू के बासी। (69)
हरि यों कहै सही फरमाओ, समर जीत है कौन बताओ। (70)
बली कहैं मैं सही बताऊँ, नहिं पितु चाचा बली न ताऊ। (71)
भगवत ने पाई स्याबासी, साँवलशा: खाटू के बासी। (72)
चक्र सुदर्शन है बलदाई, काट रहा था दल जिमि काई। (73)
रूप द्रौपदी काली का धर, हो विकराल ले कर में खप्पर। (74)
भर-भर रुधिर पिये थी प्यासी, साँवलशा: खाटू के बासी। (75)
मैंने जो कुछ समर निहारा, सत्य सुनाया हाल है सारा। (76)
सत्य वचन सुन कर यदुराई, बर दीन्हा शिर को हर्षाई। (77)
श्याम रूप मम धर पुजवासी, साँवलशा: खाटू के बासी। (78)
कलि में तुमको श्याम कन्हाई, पूजेगें सब लोग-लुगाई। (79)
मन वचन कर्म से जो धायेगे, मन इच्छा फल सब पायेगे। (80)
भक्त सद्गति को पा जासी, साँवलशा: खाटू के बासी। (81)
निर्धन से धनवान बनाना, पत्नि गोद में पुत्र खिलाना। (82)
सेवक सब है शरण तिहारी, श्रीपति यदुपति कुंज बिहारी। (83)
सब सुखदायक आनन्द रासी, साँवलशा: खाटू के बासी। (84)
दोहा
लख चौरासी है रची, भक्त जनन के हेत।
सेवक निशि बासर पढे, सकल सुमंगल देत।
लख चौरासी छूटिये, श्याम चौरासी गाय।
अछत चार फल पाय कर, आवागमन मिटाए।
सागर नाम उपनाम है, कह सब लादूराम।
सात्विक भक्ति जग में, जिते उनको करू प्रणाम।
शुक्ल पक्ष ग्रह-एकादशी, पित्रपक्ष शुभ जान।
चंद्रमा एकादशी किया, पूर्ण गुण गान।
नोट: उपरोक्त श्री श्याम चौरासी, प्रसिद्ध इतिहासकार पंडित झाबरमल्ल शर्मा की किताब "खाटू श्यामजी का इतिहास" से ली गई है।
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